पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार मईनुदीन कोहरी "नाचीज़ बीकानेरी” की एक कविता जिसका
शीर्षक है “माँ मुझे ना मार”:
माँ, मैं भी कुल का मान बढाऊँगी ।
माँ ,मैं भी रिश्तों के बाग सजाऊंगी।।
माँ,मुझे कोख में हरगिज न मारना।
माँ, मैं भी तेरी परछाई बन जाऊँगी ।।
माँ, क्या मैं कोख में अपनी मर्जी
से आई ।
तुमसे जुदा करने वालों से तो जरा पूछ ।।
घनघोर- घटा बिन, कब बिजली चमके।
माँ ,ये कोख से जुदा करने वालों से पूछ।।
माँ, मैं जब तेरी कोख में समायी ।
क्या दोष है मेरा, ये तो बता माँ।।
सूरज निकले बिन कब होता है सवेरा।
रात होने पर ही अंधेरा होता है , माँ।।
माँ, मेरी किस्मत तो मैं साथ लेकर
आई।
मैं जग में तेरी परछाई बन जी लुंगी ।।
ना करना, कभी मुझे तूँ मारने का पाप।
आने दे मुझे जग में ,तेरा दूध ना लजाउंगी।।
बेटे - बेटी में ना करो तुम अब अन्तर ।
भैया के राखी मैं ही आकर बांधूंगी ।।
माँ ,ये बात दादा - दादी को तुम बतलाना ।
माँ , मैं राष्ट्र - समाज को दिशा दिखाउंगी ।।
माँ ,मैं भी रिश्तों के बाग सजाऊंगी।।
माँ,मुझे कोख में हरगिज न मारना।
माँ, मैं भी तेरी परछाई बन जाऊँगी ।।
तुमसे जुदा करने वालों से तो जरा पूछ ।।
घनघोर- घटा बिन, कब बिजली चमके।
माँ ,ये कोख से जुदा करने वालों से पूछ।।
क्या दोष है मेरा, ये तो बता माँ।।
सूरज निकले बिन कब होता है सवेरा।
रात होने पर ही अंधेरा होता है , माँ।।
मैं जग में तेरी परछाई बन जी लुंगी ।।
ना करना, कभी मुझे तूँ मारने का पाप।
आने दे मुझे जग में ,तेरा दूध ना लजाउंगी।।
भैया के राखी मैं ही आकर बांधूंगी ।।
माँ ,ये बात दादा - दादी को तुम बतलाना ।
माँ , मैं राष्ट्र - समाज को दिशा दिखाउंगी ।।