Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: रावण दहन (सपना, औरैया, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सपना की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रावण दहन”:

 
हर बार दशहरे पर हम सब,
क्यों रावण का पुतला फूंके।
अपने अंदर के रावण को ,
क्यों हम सब मिलकर ना फूंके।
 
साधुओं के भेष में कुछ,
मक्कार हमें नित छल जाएं।
भगवा धारी रावण को हम,
आओ आज सबक सिखाएं।
 
लगा के टोपी नेता सारे,
जनता को मूर्ख बनाते हैं ।
गरीबों के खून पसीने की ,
कमाई पर एश उड़ाते हैं।
 
धर्म की आड़ में धर्माचारी,
मजाक धर्म का बनाते हैं।
पर्दा डाल कर भक्ति का,
सरेआम रास रचाते हैं।
 
अंग व्यापार का गोरखधंधा,
कुछ रावण मिलकर चलाते हैं।
देश की मां, बेटी ,बहनों की,
इज्जत मिट्टी में मिलाते हैं।
 
दवाएं हो रही कितनी महंगी,
महंगे हो रहे  डॉक्टर भी।
लालच ,स्वार्थ,कपटता से,
खुद बीमार हुए हैं डॉक्टर भी।
 
दाम बढ़े हैं  राशन के,
बिजली पानी का दम बढ़ा।
भरे पेट अब कैसे बताओ,
गरीबी में परिवारों का।
 
रक्षक ही बन गए हैं भक्षक,
अब कौन करे पहरेदारी।
निर्दोषों को पड़ते डंडे,
और दोषी करे अय्याशी।
 
दुनियां के हर कोने में,
मिल जाएंगे रावण ये।
आस्तीन के सांप के जैसे,
रावण ये फुंकार भरे।
 
रावण का पुतला मत फूंको,
अब बुराइयों का संहार करो।
चोरी ,लालच, क्रोध , कपटता,
पर  हमसब आज प्रहार करें।
 
अपने अंदर के रावण का,
आओ हम सब दहन करें।
पुरुषोत्तम रामचन्द्र जी को,
आओ हम सब नमन करें।
 
सपना का बस यही है सपना,
सच्चाई की जीत सदा हो।
जन जन के हृदय में सदा ही,
करुणा ,प्रेम, दया की जय हो।