पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार विद्या दास की एक कविता जिसका शीर्षक है “मेहनतो से है मंजिल ":
मंजिले कुछ धुँधला सा है,
मेहनतो पर ही नाज है ।
आसमानो की ऊँचाई कुछ पास है,
हर लम्हे कुछ खास है ।
यह जिन्दगी एक दरिया है,
मेहनत कामयाबी के प्रतीक ।
मुफ्त के पानी न मिलता,
ये दरिया कब डुबा ले चले ।
मेहनतो के दो रोटियां अच्छी,
मुफ्त के घास न मिले ।
हम मेहनती ही अच्छे हैं,
मुफ्त के कुछ हाँथ न लगे ।
मेहनतो पर निर्भर मजदूरे,
हर आँखों की आश टिके ।
मेहनतो से पसीने की पहचान,
हर ईमानदारों का ईमान ।
बढें चलें सफलता की ओर,
कर मेहनतो का गुणगान ।
सपने ऊँचे जरूर हो,
हकीकत है, मेहनतो के नाम ।