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कविता: मिनख जात (मईनुदीन कोहरी "नाचीज बीकानेरी", मोहल्ला कोहरियान, बीकानेर, राजस्थान)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मईनुदीन कोहरी "नाचीज बीकानेरी"  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मिनख जात":

भुखै नै तूं रोटी खिला

प्यासे नै तूं पाणी पिला

इयै सूं बडो कोई धरम नीं

सुणलै रै तूं मिनख जात ।

 

मिन्दर में तूं जा घंटी बजा

मसीत में जा तूं नमाज पढ़

च्यारुं धाम अर हज कर आ

मन चंगा नीं,बिरथा मिनख जात ।

 

काम-क्रोध नै तजदै रै बीरा

दीन- हीन रो कर तूं उपकार

इयै सूं बडो नी धरम कोई

सफल हुवैली थारी मिनख जात ।

 

मत गवां द्वेस-द्वंद में तूं जीवन

मिनख नै मिनख समझलै तूं

झूठी स्यान में ना बिता जवानी

सदकरमां सूं आछी लागै मिनख जात ।

 

दाता तनैं धन-मन घणो दियो तो

मसीहा बण तूं हरलै पर -पीड़ा

नर नारायण बण दरिद्रां री सेवा कर

दिल नां दुखाई सुणलै मिनख जात ।

 

'नाचीज' तूं भी कान लगा सुणलै

थारै कारणै मिनख - जीवां नै

कदैई कींनै भी दुख-पीड़ा नी हुवै

' गिण गांठ बांध तूं मिनख जात ।