पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरस्वती उनियाल की एक कविता जिसका शीर्षक है “हिन्दी का संदेश.....”:
मैं हिंदी हूंँ.....
तुम्हारी सोच,भावों -विचारों की अभिव्यक्ति।
याद करो वह भाषा जो सुनी थी..
मांँ की कोख में और पैदा होते ही......
बोलना सीखते ही जो सर्वप्रथम बोली
थी....
हाँ मै वही...वही हिन्दी हूँ मैं....
माता-पिता को अंग्रेजी नहीं आती थी..
सोचा तुम्हें पढ़ा-लिखा कर.....
अंग्रेजी बोलने योग्य बनाएं....
विश्व में हिंदी सबसे ज्यादा...
बोली जाने वाली दूसरी भाषा है........
पर उन्हें लगा ......
अंग्रेजी का बोलबाला है..........
और अंग्रेजी का दिखावा ......
भी तो करना था...
मैकाले की साजिश सफल हुई...
तभी तो अंग्रेजी को प्रतिष्ठा का सूचक समझ लिया......
अंग्रेजी पढ़ना लिखना बोलना बुरा नहीं ....
विकास के लिए परिवर्तन अपनाना भी जरूरी है......
पर मातृभाषा को छोड़ना...
ये बिल्कुल अच्छी बात नहीं है....
जो टूट जाता है अपनी जड़ों से,
वह वृक्ष हरा-भरा नहीं रह पाता ...
मैं तुम्हारी वही जड़ हूँ......
क्यों छोड़ दिया मुझे ....
मैं देववाणी संस्कृत की बेटी हूँ...
मेरी लिपि पूर्णतया वैज्ञानिक है...
मैं सहज,सरल व्यवहारिक....
भाषा के सभी गुणों से सुशोभित हूँ।...
गौरवमयी इतिहास है मेरा.....
फिर क्यों शर्माते हो मुझे अपनाते....
अंग्रेजी नहीं आई तो ...रोमन ही अपना ली?
बहुत पीड़ा होती है जब देखती हूंँ..
कुंजी पटल पर तुम्हें रोमन लिखते हुए....
क्यों अपनी भाषा की अमीरी छोड़.....
यह गरीबी अपना ली.......
बहुत सशक्त हूँ मैं ..हर तरह से
जुड़कर रहो माँ और मातृभाषा से
इसी में कल्याण है...
..अंग्रेजी की गुलामी...नहीं...
माँ और मातृभाषा से प्यार करो,सम्मान करो...
इनका हाथ और साथ...
कभी मत छोड़ो....
वर्ना खो जाओगे दुनिया के मेले में,
अस्तित्व ढूंढते रह जाओगे अकेले में...
*हिन्दी है हिंदुस्तान की शान, इसे दिलाओ राष्ट्रभाषा का स्थान।*
तुम्हारी सोच,भावों -विचारों की अभिव्यक्ति।
याद करो वह भाषा जो सुनी थी..
मांँ की कोख में और पैदा होते ही......
हाँ मै वही...वही हिन्दी हूँ मैं....
सोचा तुम्हें पढ़ा-लिखा कर.....
अंग्रेजी बोलने योग्य बनाएं....
बोली जाने वाली दूसरी भाषा है........
पर उन्हें लगा ......
अंग्रेजी का बोलबाला है..........
और अंग्रेजी का दिखावा ......
भी तो करना था...
मैकाले की साजिश सफल हुई...
तभी तो अंग्रेजी को प्रतिष्ठा का सूचक समझ लिया......
विकास के लिए परिवर्तन अपनाना भी जरूरी है......
ये बिल्कुल अच्छी बात नहीं है....
मैं तुम्हारी वही जड़ हूँ......
क्यों छोड़ दिया मुझे ....
मेरी लिपि पूर्णतया वैज्ञानिक है...
मैं सहज,सरल व्यवहारिक....
भाषा के सभी गुणों से सुशोभित हूँ।...
गौरवमयी इतिहास है मेरा.....
फिर क्यों शर्माते हो मुझे अपनाते....
कुंजी पटल पर तुम्हें रोमन लिखते हुए....
यह गरीबी अपना ली.......
जुड़कर रहो माँ और मातृभाषा से
इसी में कल्याण है...
माँ और मातृभाषा से प्यार करो,सम्मान करो...
इनका हाथ और साथ...
कभी मत छोड़ो....
वर्ना खो जाओगे दुनिया के मेले में,