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कविता: राष्ट्र भाषा हिन्दी (सरिता श्रीवास्तव, आसनसोल, पश्चिम बंगाल)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सरिता श्रीवास्तव की एक कविता  जिसका शीर्षक है “राष्ट्र भाषा हिन्दी:

अम्बर में जब तक सूरज और चंदा में लगी बिंदी ,
प्यारी रहे हमारी राष्ट्र भाषा कहते जिसे हिंदी।
 
शब्द, व्यंजन अक्षरों यह सजी रहती,
हिंदी हमारी वाणी और चेतना का शुभ पहचान कराती।
 
सबसे प्यारी मेरी हिंदी सबसे न्यारी मेरी हिन्दी,
हम सब मे प्रेम बढ़ाती सबको गले से लगाती।
 
पूरे देश को जो जोड़ती,
ऐसी मजबूत धागा है मेरी प्यारी हिन्दी।
 
अपने संस्कारों का सदैव बोध कराती,
जो हमें हिंदुस्तानी होने का अहसास दिलाती।
 
मुख पर आते ही कानों को अति मधुर लगती,
इक्किश कोटि-जन-पूजिता हिंदी भाषा आती।
 
चारों धामो की धाराएं जैसे सागर में मिली,
शब्द नाद, लिपि लिए हिंदी पुष्प कमल सा खिली।
 
पूरब-पशिचम,उत्तर-दक्षिण चारों दिशा सेतु बनाती,
गंगा कावेरी सी धारा  हिंदी,सबको साथ मिलाती।
 
बसी कबीर की प्रेम इसमें भाव को पिरोया रसखान,
चलो हम सब मिलकर करे हिंदी का उत्थान।
 
पहचान हमारी शान हमारी सम्मान हमारी,
सदा न्यारी लगे अमर रहे हमारी प्यारी भाषा हिन्दी।

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