पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी
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आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन" की एक कविता जिसका शीर्षक है “नारी की जाति”:
पूछ नारी की जाति
वह बहुत पछताया
दो पल में नारी ने उसे ब्रह्मांड दिखाया।
पूजते नारी को मां समझ के हम
दिया उसने बच्चे को जब जन्म
मां जगत जननी पुकारे उसे हम
बच्चे की पाटी जबकि साफ उसने
शूद्र होने के सारे गुण समाए उसमें
बच्चे की जब सुरक्षा करती है नारी
क्षत्रिय गुणों से बन जाती गुणकारी
जब वह ज्ञान व देती भौतिक संस्कार
ब्राह्मण होने के आते पास उसके अधिकार
अच्छी ग्रहणी बन करती बचत वह
वैभवशाली जीवन जब देती बन जाती वैश्य वो
आ जाता कभी उसके बच्चों पर कठिन समय
चंडी दुर्गा बनकर करती रक्षा उसी समय
पतिव्रता बन जब सारे दायित्व निभाती वह
सावित्री की तरह पूरे ब्रह्मांड को हिलाती वह
सब्र करना नारी जाति की शान है
टूट जाए अगर तू ले आती तूफान है
आज की नारी की अलग पहचान है
लक्ष्य भेद कर सीधे छूती आसमान है
सुनके नारी की जाति व उसकी माया
देवताओं ने भी हाथ जोड़ सिर झुकाया
जो करती है नारी वह नहीं कोई ओर कर पाया
इसीलिए नारी जाति को कहते सब महामाया।
दो पल में नारी ने उसे ब्रह्मांड दिखाया।
पूजते नारी को मां समझ के हम
दिया उसने बच्चे को जब जन्म
मां जगत जननी पुकारे उसे हम
बच्चे की पाटी जबकि साफ उसने
शूद्र होने के सारे गुण समाए उसमें
बच्चे की जब सुरक्षा करती है नारी
क्षत्रिय गुणों से बन जाती गुणकारी
जब वह ज्ञान व देती भौतिक संस्कार
ब्राह्मण होने के आते पास उसके अधिकार
अच्छी ग्रहणी बन करती बचत वह
वैभवशाली जीवन जब देती बन जाती वैश्य वो
आ जाता कभी उसके बच्चों पर कठिन समय
चंडी दुर्गा बनकर करती रक्षा उसी समय
पतिव्रता बन जब सारे दायित्व निभाती वह
सावित्री की तरह पूरे ब्रह्मांड को हिलाती वह
सब्र करना नारी जाति की शान है
टूट जाए अगर तू ले आती तूफान है
आज की नारी की अलग पहचान है
लक्ष्य भेद कर सीधे छूती आसमान है
सुनके नारी की जाति व उसकी माया
देवताओं ने भी हाथ जोड़ सिर झुकाया
जो करती है नारी वह नहीं कोई ओर कर पाया
इसीलिए नारी जाति को कहते सब महामाया।