पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रेम बजाज की एक कविता जिसका
शीर्षक है “हिन्दी की बिंदी":
हिन्दी की बिंदी सुन्दर लगती है , ज्यों सुहागिन के माथे बिंदी सजती है ।
अ, आ, अं और के, ख, ग से सारे शब्दों ने लिया जन्म है, हिन्दी का
अस्तित्व अद्भुत, अजर और अमर है ।
हिन्दू- मुस्लिम , सिख - ईसाई आपस में सब भाई - भाई ,हिन्दी ने ये बात सिखाई ।
हिन्दी सब को मन से जोड़ती , हमें सभ्यता की ओर मोड़ती ।
हर हिन्दुस्तानी को प्यार हिंदी से , संस्कृति की पहचान हिंदी से ।
हर दिन, हर पल रहते हम हिन्दी से दूर , विदेशी भाषाएं बोल-बोल कर
उच्च साबित करते हैं , हिंदी में ना बात करके हिंदी को अपमानित करते हैं ।
हिन्दी की बहना उर्दू ने हमको शायरी सिखाई है , फिर कैसे कह दे
हम हिन्दी अपनी नहीं पराई है ।
हिन्दी बोलने - पढ़ने से भला क्यों आती हमको शर्म है ,
मातृभाषा यही है , राष्ट्र भाषा यही है , कैसे ना हम इसका मान करें
आओ मिल कर सब हिंदी का उत्थान करें ।
एक दिन हिंदी दिवस मना कर तीर क्या कोई मार पाएगा ,


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