सुषमा अनंत खिल रही मेरे नंदलाल ,
पुलक - प्रसन्नता के आप तो निधान है ।
जगत का कालचक्र आपके अधीन सब,
आपकी कृपालुता भी अतिव महान है ।
दुनिया-जहान के हैं आप ही तो माई-बाप,
सब ओर चल रह्यो आपको विधान है ।
कहै रविकंत वह मानुस कृतारथ है ,
आपकी मेहर से जो नहीं अनजान है ।।
छोटो-सो है नंदलाल, वेस धर्यो लाल लाल,
कंठ में सुभग माल मन हरषावै है ।
केसरी दुपट्टो कांधै, कस्तूरी तिलक भाल,
रुचिर लगत अतिरूप झलकावै है ।
छोटे-छोटे चरन हैं,साँवलो-सो बरन है,
बेनी लसै स्याम बाल-छवि गड़ि जावै है।
कहै रविकंत तू है पूरन अपार ब्रह्म,
ज्ञानी, ॠषि-मुनि तक पार नहिं पावै है ।।