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कविता: शिक्षक और शिक्षा (श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल', लहार, भिण्ड, मध्यप्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार श्याम सुन्दर श्रीवास्तव 'कोमल' की एक कविता  जिसका शीर्षक है “शिक्षक और शिक्षा":
 
 
जो जीवन में सत्य असत से, हैं परिचय करबाते।
 
वही जगत में पूज्य सदा ही, हैं गुरुवर कहलाते।।
 
 
जीवन में अज्ञान तिमिर की, घिरी घटायें काली।
 
मोह,दंभ जब विहँस रहे हों, डसे वासना-व्याली।
 
लोभ-लालसा पैर पसारे, माया डाले डेरा-
 
तब पावनतम सदा ज्ञान की, गुरुवर ज्योति जलाते।
 
इसीलिये तो गुरु इस जग में, सदा पूज्य कहलाते।
 
 
वर्तमान में हवा विषैली, ऐसी विकट चली है।
 
जिसने इस मानव समाज की, सोच आज बदली है।
 
शिक्षा-शिक्षक में परिवर्तन, उपज आधुनिक युग की-
 
शिक्षक ही आधुनिक-पुरातन, में संतुलन बनाते।
 
इसीलिये तो गुरु इस जग में सदा पूज्य कहलाते।।
 
 
अब हावी बाजारवाद है, शिक्षा औ' शिक्षक पर।
 
स्थितियाँ परिस्थितियाँ बदलीं, आज आधुनिक युग पर।
 
सब मानक अब बदल गये हैं, यह है मांग समय की-
 
क्या अच्छा है और बुरा क्या, शिक्षक ही समझाते।
 
इसीलिये तो गुरु इस जग में, सदा पूज्य कहलाते।
 
 
शिक्षक भी धन लोलुप होकर, इसमें आज फँसे हैं।
 
अर्थ-स्वार्थ के इस दलदल में, पूरी तरह धँसे हैं।
 
हो अनुशासनहीन शिष्य भी,सब नैतिकता भूले-
 
मान और सम्मान ताक पर,धर कर हैं इतराते।
 
गुरू शिष्य सम्बन्धों पर हैं,गहरे दाग लगाते।