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कविता: ऑनलाइन का ज्ञान (निशा ठाकुर, लूकशान, नगराकाटा, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “ऑनलाइन का ज्ञान":
 
घर में online पढ़ाई का
वाह! क्या system चलाया है
अरे,ये तो प्राचीन तरीका है भईया
जो भूतकाल से आया है
आप भी सोच रहे होंगे
ये प्राचीनता से कैसे जुड़ा?
Online से भला इसका संबंध
आपस में कैसे मिला?
रुकिए, ठहरिए समझती हूं
आश्रम का आंगन
वृक्षों की ठंडी छांव
वो प्राचीनता की शिक्षा
हर एक गांव गांव
जब महर्षि,महेज्ञानी जन
बैठते थे पलाथी मार
शिष्य आते शिक्षा लेने
अपने गुरुओं का द्वार
बैठ गुरु जब ध्यान लगाकर
शुरू करते अध्याय
बिन खाता बिन कलम के
हर बात समझ अजाय
फर्क क्या है???
बताओ जरा
फर्क क्या है???
गुरु बना mobile है
Online अब ज्ञान हुआ
वृक्ष की छाया छत होगई
आश्रम घर का द्वार हुआ
बिन कलम बिन खाता के
यह भी प्राचीनता का भाग हुआ
 
घर में online पढ़ाई का
वाह! क्या system चलाया है
अरे,ये तो प्राचीन तरीका है भईया
अब इतिहास ने खुद को दोहराया है