पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार डिंपल राठौड़
"उर्मिल" की
एक कविता जिसका शीर्षक है “दर्द की स्मृतियां”:
जब चल देती हूँ उन रास्तों पर
जहाँ है सिर्फ दर्द की स्मृतियाँ
एक टूटे हुए इन्सान को पाती हूँ
उसकी ख़्वाहिश उसके सपने ध्वस्त मिलते हैं
एक टूटे मकान में
जो बनाया गया था दो लोगों के सपनों के महल जैसा
आज सिर्फ है वहाँ रोती हुई चीखे उस लड़की की
जो सिर्फ विश्वास में लेकर छली गई
आज बिखरा पड़ा है वो टूटा मकान अपने ख्वाब के साथ
देखती हूँ उस टूटे मकान में खुद के मृत शरीर को
जो सिर्फ किसी के धोखे में वहां दफना दिया गया ..!!
आज वही रास्ते पहुंच गई है मेरी यादें
आज फिर दाह संस्कार करने के बहाने
मार आई हूँ मैं खुद को खुद के भीतर...!!
ओह..!!
ये असहनीय पीड़ा मरने से पहले कितनी बार मारेगी मुझे.!!
जहाँ है सिर्फ दर्द की स्मृतियाँ
एक टूटे हुए इन्सान को पाती हूँ
उसकी ख़्वाहिश उसके सपने ध्वस्त मिलते हैं
एक टूटे मकान में
आज सिर्फ है वहाँ रोती हुई चीखे उस लड़की की
जो सिर्फ विश्वास में लेकर छली गई
आज बिखरा पड़ा है वो टूटा मकान अपने ख्वाब के साथ
देखती हूँ उस टूटे मकान में खुद के मृत शरीर को
जो सिर्फ किसी के धोखे में वहां दफना दिया गया ..!!
आज फिर दाह संस्कार करने के बहाने
मार आई हूँ मैं खुद को खुद के भीतर...!!