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कविता: रेत सी फिसलती जिंदगी (कमला सिंह, खोरीबाड़ी, दार्जिलिंग, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कमला सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “रेत सी फिसलती जिंदगी”:

घड़ी-घड़ी रेत सी फिसलती है जिंदगी

पल-पल  शनै: शनै: गुजरती है जिंदगी

वक्त के भरोसे मत बैठ ऐ ! मुसाफिर

वक्त कभी किसी का इंतजार नहीं करता

जी लेना जिंदगी के हर लम्हों को जी भर

लम्हा-लम्हा बर्फ सी पिघलती है जिंदगी |

 

जिंदगी जिना है तो कर लेना मनमर्जियाँ

कभी हवाओं के संग -संग बहक जाना

कभी फूलों-सा डायरी के पन्नों में महक जाना

कभी चाँद की चाँदनी सा छिटक भी जाना

जिंदगी के हर लम्हें को पिरो लेना मोती- सा

क्योंकि प्रतिपल रेत- सी फिसलती है जिंदगी |

 

वक्त को यूँ ना गवाँया कर ऐ मुसाफिर

जो है अभी है , इस पल है , यही जिंदगानी है

चलते रहना प्रतिपल , जीवन की यही रवानी है

कभी देखा है तुमने वक्त को अश्रु बहाते हुये?

बीत गई सो बात गई मान लेना इस कटु सत्य को

प्रतिपल रेत- सी फिसलती है जिंदगी |