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कविता: हमसफर (मीनू शर्मा, सिलीगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मीनू शर्मा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हमसफर”:

बारिश की वो रात

मुझे आज भी है याद।

छाता नहीं था मेरे पास,

केवल था तुम्हारा साथ ।

मुझे नहीं थी कोइ परवाह

मेरा प्रियतम मेरे साथ जो था।

तुम भी मस्ती में थे झूम रहे,

बिन छाता बारिश में घूम रहे।

कितने बातो को साझा किया हमने,

सुख-दुख आधा-आधा किया हमने ।

बिजली भी ऐसे चमक रही थी,

मानो अपने हमसफर को देखा हो उसने।

चमक रहे थे उसके सपने,

इधर-उधर तडक-तडक के।

बहके थे उसके भी अरमान,

मेंढक की टर् टर् आवाज,

निरवता को ढकने का उसका अपना राग।

तम गहराई, बरसे घनघोर बादल,

सब जा चुके थे अपने-अपने घर।

बूंदो को अपनी अंजुलि में भर

मेरे चेहरे पर तुम छिड़कते ऐसे,

कुसुम संग भौंरा अठखेलियां करता हो जैसे !

पत्तों पर बारिश की बूंदे,

चमक रहे थे मोती जैसे।

ऐसी छटा पर तुम्हारी मुस्कान!

धड़कन तेज हो गयी ,

आया फिर तूफान ।

डरी, सहमी सी मैं घबराई

दौड़ी तुम्हारे पास आई।

तुमने दिया भरोसा

कुछ नहीं होने का।

बाहूपाश में मुझको जकड़ के,

चल दिए थे छाता पकड़ के।

कितना सुन्दर वह एहसास

हरपल ह्रदय के मेरे पास।