पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार प्रिया गौड़ की एक कविता जिसका शीर्षक है “गाँव की औरतें”:
पौ फटने से पहले उठ जाती हैं
गांव की औरतें
उठते ही बुहारने लगती हैं
अपना छोटा संसार
अपने लोटे में भरे जल फूल से करती हैं स्वागत
अपने चूल्हें में दहका लेती हैं अलसायी आग
लगा कर डलिये में सुखी रोटियों का ढ़ेर
गिन कर रख देती हैं सबके ही हिस्से का
निकल पड़ती हैं नए दिन को ढकेल कर पार लगाने
अपने हाथों में पौ फटने के बाद का संघर्ष
जिससे ना नई लुगरी का प्रबंध हो पाता
ना ही थाली में सज पाता रोटी के साथ कोई और उपबंध
ना लगते हैं उनके आंखों में काले काजल
ना ही वो लटकाती हैं अपने कानों में बड़े बड़े सुनहरे झुमके
जिसे देख तुम उतार सको अपने डायरी में
उनकी शरीर से आती मिट्टी की खुश्बू से
बोझ उठाने से चलती उनकी तेज -तेज साँसों से
बयाँ करती हैं उनका रोज़ का महीन और ज़हीन श्रृंगार
जिनकी होती हैं फटी और मैली लुगरी
वही गाँव की औरत जो उठती हैं रोज़
पौ फटने से पहले....