पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार लाल चन्द जैदिया "जैदि" की एक ग़ज़ल:
दिल रोता है आंसू मगर निकलता नही
कतरा, कतरा बहता है लहू दिखता नही।
मरना चाहे अगर चैन से कोई मरता नही।
जिन्दा तो है मगर जिन्दा वो दिखता नही।
खौफ इतना है कि मगर कोई कहता नही।
कि गुल – ऐ - बहार मे भी गुल खिलता नही।
संगो - खार राहो मे है, फिर भी डरता नही।
शहर – ऐ - फिजाओ: शहर के वातावरण
गुल – ऐ - बहार: गुल के बहार
शोजे – गम – ऐ - जुनून: आन्तरिक दुखः की पिड़ा
संगो - खार: पत्थर और कांटे