पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सीमा गर्ग मंजरी की एक कहानी जिसका शीर्षक है “नेताजी की सभा":
सुनो! सुनो!!
जनता को सूचित
किया जाता है कि- हमारे शहर से चुने गए युवा नेता चुनाव जीतने की खुशी में अपने
शहर की मजलूम जनता को एक गर्म कम्बल और पाँच सौ रुपये नकद उपहार प्रदान करेंगे ।
अतएव शहर के जीमखाना मैदान में कल शाम सायंकाल पांच बजे सभी उपस्थित होकर नेता जी
के भाषण सुनें । और अपना उपहार प्राप्त करें ।
मौहल्ले मेंं
दूरध्वनी विस्तारक यंत्र की तेज गूँजती आवाज में यह मुनादी सुनकर इमरती की बाँछें
खिल उठी ।
"अरे, राम राम!!
"ई तो गजब
हुई गवां !"
"भली करें
राम ई नेता चुनाव जीत गया। अब जनता की खूब ठाठ से सेवा करत है
मुई भयंकर पूस की
सर्दी बरछी की ताईं शरीर में घुसकर काटे डाले है ।
अबहूँ तो कल हमऊ
भी गर्म कम्बल की मखमली गर्मी में लोटेगी ।
पाँच सौ रुपये
नकद उपहार में तो हफ्तों की डबलरोटी चाय नाश्ता चलेगा ।"
मन ही मन बुजुर्ग
इमरती अपनी खोली मेंं मिलने वाले उपहार का हिसाब किताब लगाकर फूली नहीं समा रही थी
।
इमरती कल शाम चार
बजे ही जीमखाना मैदान जा पहुंँची । नेताओं के भाषण सुनने के बाद मंच से सबको लाइन
बैठे रहकर ही अपने अपने हिस्से के कम्बल और पैसे दिये जाने की घोषणा की गई ।
मगर भीड़ में
कहाँ सब्र संतोष था । शांति से बैठी भीड़ का औरो को कम्बल बँटते देखकर सब्र का
बाँध टूट गया ।
सभा व्यवस्थापक
के नियन्त्रण से बाहर हो गई भीड़ ने कितने ही लोगों को धक्का-मुक्की करके नीचे
गिरा दिया।
व्यवस्थापक सभा
का इतना बुरा हाल देखकर सिर पर पैर रखकर भाग गए । बेचारी इमरती का दिल टूट गया ।
"अमुक नेता
जी ने अपनी भाषण सभा में मजलूम जनता की सेवार्थ लाखों रुपये के कम्बल और उपहार
भेंट किए ।" अमुक समाचार अगले दिन समाचारपत्रों की सुर्खियों में प्रमुखता से
प्रकाशित था ।