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कविता: कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा (अंजना यादव, गाजियाबाद, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा
हंसते आंखों में भी आंसू लेकर आया है।
 
ना जाने कितने मासूमों की                                   
जान और लेकर जाएगा।
कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा।
 
तुम्हारे इस कोहराम का                                
जिम्मेदार मैं किसे ठहराऊ।
 
या खुद ही इस कोहराम का                                     
मैं जिम्मेदार बन जाऊं।
कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा।
 
हजारों मासूमो के ऊपर से मां का
साया तुमने ही छीना है।
 
अभी तो यह पहला कोहराम था तेरा
और ना जाने कितने कोहराम अभी बाकी है तेरे।
कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा।
 
अपनी दर्द भरी कहानी मैं किसे सुनाऊं।
 
या देश की दर्द भरी तस्वीर को                              
बयां कर दू मैं कुछ शब्दों में ही।
कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा।
 
कभी रोटी के लिए तड़पाया                                  
तो कभी उसी रोटी का दाम है लगाया।
हां बस फर्क इतना था ।
 
जीते जी रोटी के लिए तड़पाया
मरने के बाद उसी रोटी का मुआवजा है पाया ।
कोरोना ये कैसा कोहराम है तेरा।