पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार एस● के● कपूर "श्री हंस" की एक कविता जिसका शीर्षक है “मिलकर चलो तो ही हर जीत समझो पक्की है”:
गैरों का क्या आज अपनों
का भी जिक्र नहीं करते।
यूँ बदला है माहौल किअब
किसी की फिक्र नहीं करते।।
आज स्वार्थ सिद्धि हो गई
बात सबसे ज्यादा जरूरी।
आज किसी और का क्या
खुद पर भी फ़ख्र नहीं करते।।
बहुत जरूरी है जोड़ना और
सबसे ही जुड़ कर रहना।
सुख दुःख में साथ देना और
सवेंदनायों में बंध कर बहना।।
एकाकीपन और एकांत का
अंतर तो समझना है जरूरी।
एक और एक होते ग्यारह हैं
जरूरी बात मिल कर कहना।।
भूल गए हैं लोग कि जरूरी है
मिल कर चलना आगे बढ़ना।
नये नये कीर्तिमान स्थापित
हमें हैं मिल कर ही करना।।
सहयोग सामंजस्य का ही तो
दूसरा नाम अपना जीवन है।
यदि चाहते हो जीत पक्की तो
हर मुश्किल पर मिलकर चढ़ना।।
गैरों का क्या आज अपनों
का भी जिक्र नहीं करते।
यूँ बदला है माहौल किअब
किसी की फिक्र नहीं करते।।
आज स्वार्थ सिद्धि हो गई
बात सबसे ज्यादा जरूरी।
आज किसी और का क्या
खुद पर भी फ़ख्र नहीं करते।।
सबसे ही जुड़ कर रहना।
सुख दुःख में साथ देना और
सवेंदनायों में बंध कर बहना।।
एकाकीपन और एकांत का
अंतर तो समझना है जरूरी।
एक और एक होते ग्यारह हैं
जरूरी बात मिल कर कहना।।
मिल कर चलना आगे बढ़ना।
नये नये कीर्तिमान स्थापित
हमें हैं मिल कर ही करना।।
सहयोग सामंजस्य का ही तो
दूसरा नाम अपना जीवन है।
यदि चाहते हो जीत पक्की तो
हर मुश्किल पर मिलकर चढ़ना।।