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रक्तबीज_९ || सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र", जालापाडा बस्ती, बानरहाट, जलपाईगुडी, पश्चिम बंगाल ||

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सत्यम घिमिरे "भुपेन्द्र" की "रक्तबीज काव्य शृंखला" की एक कविता:
 
|| रक्तबीज_ ||
 
 
चारो और निरासा ही निरासा छाई हुई है
समाचार रक्तबीज ने जबसे भिजवायी है
अपनी खौफ मे वह सबको कर गिरफ्तार
चलाता है थाना ए न्यायाधीश पद हर बार ।
 
सबने जाना है सबने पहचाना कैसा है रक्तबीज
किसी छोटे से कल्वर्ट का कन्स्ट्रक्सन होता है
जिसका आधा हिस्सा पेन्ट चोर जेब मे होता है
कल्वर्ट का पुर्जा पुर्जा किसी बाँस जैसा हिलता है
 
 
हर भुमी मे मकान बनाने कि योजना होती है
कागज पर स्वर्गीय मकान निर्मित होती है
हर बारिश मे छत चुती है , लाशे बहती है
जहाँ रक्तबीज सहानुभूति का दरबार लगाता है
 
 
एक सिमेण्ट का रोड गाव मे बन्ने को पास होता है
जिसका ठेकेदार पन्चायती राज का खास होता है
सरकारी चारागाह जैसे हर काम काज होता है
बकरी और शेर दोनो को रक्त चुसने दिया जाता है
 
 
टोपी पहने सादा कुर्ता पायजामा पहने वह कौन?
जो पाँच साल के लिये परिधि से गायब रहता है
मगर यह सच नही होता है वह हमारे पास होता है
अदृश्य शक्ति की तरह हर खम्बे मे बास करता है।
 
किसी बडे घटना कि गुन्जाईस नही होती है
तभी घोटालो का सरताज बाज पैर मारता है
जो हर शब्द मे बन्देमातरम का नारा लगाता है
योजना को अपनी दान्तो मे चबाता जाता है ।
 
प्रथम दरबार दिल्ली का रक्तबिज जमात चलाताहै
द्वितीय दरबार रक्त का प्रदेश भवन मे चलता है
तृतीय दरबार जिला कार्यलय मे नोट मे चलता है
चौथा दरबार कानुनगो आन्ख पट्टि मे चलाता है
 
पाँचवा दरबार कृषि कार्यालय मे चलता है
जिसमे हर दाने मे बन्दुक कि नोक रखी होती है
छठा दरबार थाने के चोखटो मे चलता है
जिसमे अपराधी को हत्या करने कि छुट होती है।
 
 
सातवा दरबार मन्दिर मस्जिद के गुम्बद मे होती है
जिसकी दिवारो पर मौत का पाठ पढाया जाता है
जिसके पोथी मे नर का कन्काल ओढाया जाता है
खुन से भिगे लास को चादर कफन दिया जाता है
 
 
आठ्वा दरबार फेट्री कि चिमनियो मे लगती है
जिससे निकली धुआ रक्त बुन्द का वाष्प होती है
जिसके मशिन के चक्को मे हाथ कट जाते है
जिसका शरीर भट्टी जैसी तपती भस्म हो जाती है
 
नौवा दरबार हर सरकारी आफिस मे लगती है
जहाँ टेबल मे बडा सा नेम प्लेट और पद होता है
जहाँ वही दस्तावेज कागज काम पर आता है
जिसमे गान्धी का टकला चिपका हुआ रहता है
 
दसवा दरबार देहाडी को लुटने मे लगती है
किसकी सिराओ मे बस खुन ही खुन होता है
वो ठेकेदार केवल देहाडी मारने छिन्ने का नही
वो शरीर चुसने का भी करता जाता है ।
 
ग्यारहवा दरबार एक व्यवस्था का लगता है
जो अन्धकार मिटाने के नाम पर लगता है
मगर मगज ऐसा है कि वो चुपचाप रहता है
जहाँ नोट दिखता है वही शिक्षा योजना बनाता है
 
 
एक और दरबार है जो उस जगह लगते है
जहाँ नारी हर दफे नोची और लुछी जाती है
दहेज के नाम पर वह हर बार जलाई जाती है
उसके देह पर रक्तबीज का प्रहार होता है ।
 
ऐसे हजारो दरबारे लगती है इस धरा पर
जहाँ आदमी को आदमी कि जात खाता है
फसल कि बाली से योजना कि थाली तक
रक्त कि बुन्दो कि मुसलधार बरसात होती है
 
 
अग्रिम संग्राम मस्तिष्क मे चलता जाता है
जो सुबह होते ही तत्काल खत्म हो जाता है
किसी मेले मे जैसे को बच्चा खो जाता है
वैसे ही रक्तबीज विरोधी गायब हो जाता है
 
 
छुट गया है कई और रक्तबिज कि सन्तान
जिसका यहाँ वर्णन नही हो पाया है
जिसकी जमात को भेदने का का है प्रयास
हर एक बुन्द रक्त का खत्म करने का है प्रयास ।