पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार शुभम प्रसाद की एक कविता जिसका शीर्षक है “हमने भी देखा”:
पापा के गोद में रोते देखा है,
मां के आंचल में छिपते भी।
भाई का प्यार देखा है,
तो भैया की मार भी।
बहना की गलतियों का भार भी ढ़ोया है,
और शब्दों की फटकार भी।
बिदाई की बोझ के साथ
ससुराल की मर्यादा भी सही है।
आंटे को गुंधने वाली कलाई की
कोमलता देखीं है,
और गर्म तवे पर रोटीयां सेंकने वाली
कोमल ह्रदय भी।
भोजन परोसने का अधिकार भी पाया,
साथ ही बची हुई खाने से भूख मिटाने का विचार भी देखा है।
कह देती मिर्च तिखी है,
क्यो नही कहती समाज कड़वा है।
कह देती अध पकी चावल है,
क्यों नहीं कह सकती उम्र नहीं बोझ संभालने की।
होते कुम्हार के बर्तन बिना पके कमजोर,
यहां कमजोरी ही घड़े को कठोर रही है।
ह्रदय तो कोमल बाल्य की ही है,
परन्तु संतान ह्रदय को संभालना भी आवश्यक है।
आखिर क्यों इंसान एक परिवार दो,
दो घर पर अपना कोई नहीं।
क्या बात है लोग सफेद फूल पर भी,
लाल चन्दन लगाकर पुजा करते हैं।