पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ● भूपेन्द्र कुमार की एक कविता जिसका शीर्षक है “दृश्य”:
बसते और बिसरते
नव नित
पलकों में दृश्य
पल पल के ।
आज के दृश्य कल
ना होंगे
आज नही रहे दृश्य
कल के ।।
हार नहीं कुछ जीत नहीं है
ये दृष्टिकोण है
रीत नहीं है
इदम् वदंति
विद्ववत वाणी
भय बिन होती
प्रीत नहीं है
गरल तीव्रता के भय से ही
अमृत के घट भरके
छल के.....
बीज कभी ना खोया
जाता
वही उगता जो बोया
जाता
सभी यतन निष्फल
होते हैं
पछताया और रोया
जाता
मन से कर्मबिम्ब
ना मिटते
माथे पर चंदन को
मल के ......
बढता अड़िग लेश न
डरता
पर पीड़ा हर हाल
में हरता
शीत ग्रीष्म
बर्षा ऋतुओं में
असंतुष्ट ही संघर्ष
करता
जन साधारण जीवन
जीते
परिस्थिति के
साँचे ढल के ......
पंच तत्व का बना
क़िला है
आत्मसुगंधि पुष्प
खिला है
जीवधारियों में मानव
को
बुद्धि और
विवेक मिला है
मृत्यु के
निर्दयी जबड़ों में
रह जाता हिम जैसे
गल के ......
प्रकृति का
सम्मान किये जा
योग भोग संयम से
जिये जा
श्रमफल तो मिल ही
जाएगा
कर्म कर्म बस
कर्म किये जा
जीत हार की बात भूल कर
देख ‘अनाड़ी’सच पे चल के ......