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कविता: माँ का लाल दीवाना था (डॉ• कुमुद बाला, हैदराबाद, तेलंगाना)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉकुमुद बाला  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “माँ का लाल दीवाना था”:
 
शहीद भगतसिंह नाम था उसका आजादी का दीवाना था
नया पहन के बासंती वह चोला घर से निकला  मस्ताना था
 
सुखदेव, भगतसिंह औ राजगुरू, इन तीनों की ही तिकड़ी थी
जालियाँ वाले बाग की खबर पर दहला वीरां मर्दाना था
 
 
उम्र थी तेइस साल किंतु दीप आजादी का उसने जलाया था
तिमिर की देश से हटाने चदरिया भोला वह परवाना था
 
उसे तो था बदला लेना, औ मिटाना दुश्मन को मिशन  उसका
संगी - साथी इंकलाबी,  बिस्मिल के शेरों से उसका याराना था
 
 
देनी थी शीश की कुर्बानी, भारत माँ का दुलारा लाल था
माँगी नहीं माफी उसने लिए सर पे कफ़न बड़ा सयाना था
 
जंजीरों में जकड़ी माँ के आँसू दिल को बहुत दहलाते थे
मुक्त हो आजादी की दुल्हन उसकी ज़िद में  छुपा नज़राना था
 
नई पीढ़ी के नौजवानों में कहाँ दिलेरी इतनी मिलती है
शेर का दिल था उसमें और वह रखता फौलादी सीना था
 
नहले पे दहला कर उसने अंग्रेजों की नाक में दम कर डाला
हीरे की भारत की अंगूठी में स्वराज्य का जड़ा  नगीना था
 
आजाद रहेगा जब तक भारत स्वर्णाक्षरों में वह नाम होगा
भारत माँ का था वह लाल कुर्बानी तो ईश्वर का बहाना था