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कविता: उगता सूरज (शंभू राय, न्यू माल जं●, मालबाजार, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार शंभू राय की एक कविता  जिसका शीर्षक है “उगता सूरज”:

भोर हुई

आसमान में चारों ओर लाली छाई

और

छिप चुके हैं नभ के झिलमिलाते

तारे सारे

छट चुका है भय फैलाने वाला,

अंधकार भी

उपस्थित हुआ मनोरम दृश्य हैं

प्रतीत होता है़ ऐसा मानो....!

जैसे.....

प्रकृति ने फैलायी अपनी बाहें हैं ।

 

जीवों को देता नवीन ,

स्फूर्ति वो

प्रभा प्रभात की निराली

देता  संदेश सुख-समृद्धि का यह ।

 

देख अतुलनीय सुंदरता व्यापक

 मानो

प्रकृति ने  ओढ़ ली

लाल चुनरी है.....!

हरे लहलहाते खेतों में

सूरज की पहली किरण पडी़

उत्पन्न हुआ नजारा ऐसा

कर अवलोकन

मन में  अनोखी उमंग छायी है ।

 

चहचहाती चिडि़यों का झुंड भी

अब तो ,

मृदुल गान धुन में अपने

सुनाने को आतुर हैं

ठंडी ठंडी बहती पवन प्रभात का

हृदय को परम सुख देती है ।

 

देख प्रकृति का रूप मनोरम

सारा जग कर रहा हैं अनुभूति

परम आनंदायनी शांति का....!

 

उगता सुरज

रोज आता है ....

हमें

पाठ पढा़ने

नियमितता का....!

 

क्योंकि

 

नियमितता ही

जीवन का आदर्श

और

सभी सफलताओं का

केवल मात्र यह ही कुंजी  है ।