पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “जितेन्द्र 'कबीर'” का एक लघुलेख जिसका शीर्षक है “भौंकने वालों का इलाज”:
मेरे पड़ोसी राणा जी एक दिन सुबह-सुबह किसी बहुत जरूरी काम से शहर के लिए घर से निकले। हमारे गांव से शहर के लिए बस बीस मिनट में निकलने वाली थी और राणा जी के घर से बस स्टाप का पैदल रास्ता लगभग पंद्रह मिनट का था।
राणा जी अभी पड़ोसी के मकान के सामने से गुजर ही रहे थे कि उनके कुत्ते ने रास्ते में आकर जोर जोर से भौंकना शुरू कर दिया। राणा जी आस पास से कंकड़-पत्थर उठाए और उसको वहां से भगाने लगे। कुत्ता चालाक था, जब राणा जी पत्थर मारें तो वो गेट के अंदर भाग जाए, जब चलने लगें तो फिर सामने आकर भौंकना शुरू कर दे। आखिर परेशान होकर राणा जी ने कुत्ते के मालिकों को आवाजें लगाई। जब तक वो लोग अपने कुत्ते को पकड़ कर अंदर बांधते राणा जी के पंद्रह मिनट बर्बाद हो गये। अपनी बस पकड़ने के लिए वो बड़ी तेज भागे पर बस न पकड़ पाए। हताश निराश होकर राणा जी वापस लौट आए और मुझसे पूरी घटना बयान की।
"देखिए राणा जी, अगर कुत्ता भौंक रहा था तो उसे भौंकने देते, आप उसे नजर अंदाज करके अपने रास्ते निकल गये होते तो आपके जरूरी काम का नुक़सान न होता।अगर हम अपने रास्ते में भौंकने वाले हर कुत्ते को भगाने में अपनी ऊर्जा और समय बर्बाद करने लगें तो हम अपने लक्ष्य तक कभी नहीं पहुंच पाएंगे।" - मैंने ऐसे मामलों में अपना दर्शन उन्हें समझाया।
"और अगर कहीं वो मुझे काट लेता तो फालतू में मुसीबत हो जाती, रैबीज का टीका अलग से लगवाना पड़ता।"- राणा जी ने कहा।
मैंने उन्हें फिर से समझाया - "राणा जी, एक बात तो आप मानकर चलिए कि ज्यादातर भौंकने वालों में काटने की हिम्मत नहीं होती चाहे वो कुत्ता हो या इंसान। इसलिए जिंदगी में न ऐसे कुत्तों के भौंकने पर अपना समय बर्बाद करो और न ही ऐसे इन्सानों से बहस करने में अपना दिमाग खराब करो। अगर आपका समय, ऊर्जा, रचनात्मकता लक्ष्य प्राप्ति में लगे तो निश्चित ही आप कामयाबी की राह पर अग्रसर होंगे। बाकि तो कुत्तों का काम है भौंकना, वो भौंकते रहेंगे, लोगों का काम है बोलना, वो बोलते रहेंगे।
हां अगर कोई कुत्ता काटने ही पड़ जाए और कोई इंसान मारने ही पड़ जाए तो फिर बिना देर किए उनका इलाज कर देना चाहिए।"
" वो कैसे ? - राणा जी ने पूछा।
" दांत तोड़ दो" - मैंने कहा।
बात राणा जी की खोपड़ी में पड़ गयी। अगले दिन वो बस लेने के लिए थोड़ा और जल्दी निकले, साथ ही हाथ में एक छोटा मगर मजबूत लट्ठ लेकर पीठ पीछे छिपा लिया। उधर कुत्ते ने देखा कि कल वाला शिकार आ रहा है, तो जोर से भौंकता हुआ मोर्चे पर आ डटा। राणा जी ने आज उसको भगाने की कोशिश नहीं की, वो चुपचाप अपने रास्ते चलते रहे। कुत्ते ने जब देखा कि आज तो उसके भौंकने का कोई असर नहीं हो रहा तो वो और जोर शोर से भौंकते हुए राणा जी पर झपटने को हुआ, मगर आज राणा जी मुस्तैद थे, उन्होंने सीधा कुत्ते के मुंह पर लट्ठ दे मारा। "टंईईईई" की आवाज के साथ कुत्ते के दांत टूट कर गिरे और कुत्ता दुम दबाकर अपने घर के अंदर भाग गया। राणा जी की बस उस दिन मिस नहीं हुई और न ही फिर कभी उस कुत्ते ने राणा जी का रास्ता रोका।
"यार, तेरी सलाह तो बड़ा काम कर गई।" - राणा जी प्रफुल्लित हो कर मुझसे कहा।
मैंने मुस्कुराते हुए कहा- "राणा जी, यह तरकीब इंसानों पर भी उतनी ही कारगर है, कभी मौका पड़े तो आजमाना।"