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लघुलेख: गुरु की महिमा कितनी प्रासंगिक (डॉ. मीना कुमारी परिहार, पटना, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉ. मीना कुमारी परिहार का एक लघुलेख जिसका शीर्षक है “गुरु की महिमा कितनी प्रासंगिक”:

 
"गुरु बिन ज्ञान न उपजै गुरु बिन मिलै न मोक्ष
गुरु बिन लखै न सत्य को गुरु बिन मिटै न दोष"
गुरु हमें अंधकारमय जीवन से प्रकाश की ओर लै जाते हैं। गुरु एक दिये की तरह होते हैं जो शिष्यों के जीवन को रोशन कर देते हैं। खासकर विद्यार्थी जीवन में गुरु कु अहम भूमिका होती है।गुरु जीवन के अलग-अलग पड़ाव में उन्हें मुश्किलों से लड़ना सीखाते हैं। विद्यार्थियों को अनुशासित होना, विनम्र, बड़ों का सम्मान करना सीखाते हैं।
       गुरु को सम्मान देने के लिए गुरु पूर्णिमा मनाया जाता हूं। इस दिन घरों  और मंदिरों में विशेष पूजा पाठ होती है। क‌ई जगहों में जहां गुरु अपने शिष्यों की शिक्षा। मैं सम्पूर्ण सहयोग देते हैं , उनका गुरु पूर्णिमा के दिन आदर सत्कार किया जाता है।इस गुरु दक्षिणा के रूप में दान किया जाता है और इससे शिष्यों को पुण्य प्राप्ति होती है।
      हर किसी के जीवन में गुरु कि विशेष महत्व होता है। मनुष्य को गुरु का महत्त्व समझना चाहिए और जीवन पर्यन्त उनका सम्मान करना चाहिए। उनके आशीर्वाद के बगैर मनुष्य अधूरा है। गुरु को प्रणाम किये फिनिश हम कोई शुभ कार्य शुरू नहीं करते हैं। उनके द्वारा दी गयी शिक्षा मनुष्य को जीवन भर काम आती है। उनके आशीर्वाद से कीमती चीज उनके शिष्य के लिए और कुछ हो ही नहीं सकती है। गुरु के प्रति हमेशा शिष्य के मन में श्रद्धा होनी चाहिए, तभी शिष्य अपने कार्य के बारीकियों को भली भांति सीख सकते हैं।
    पहले गुरु-शिष्य की परंपरा कुछ अलग थी। आज यह काफी बदल ग‌‌ई है। शिक्षक पहले छात्रों के अभिभावक तुल्य हुआ करते थे। लेकिन आज के छात्र शिक्षकों का सम्मान नहीं करते। वर्तमान समय में सभी को मिलकर इसे वापस कायम करने की जरूरत है।
     आधुनिक युग में शिक्षक अपने बढ़े दायित्व को निभा रहे हैं।आज शिक्षा का फलक बढ़ा हुआ है। इसमें नैतिक शिक्षा के साथ-साथ विषय ज्ञान और तकनीकी शिक्षा का समावेश हो गया है। विद्यार्थियों को शिक्षक तभी अच्छे ढंग से पढ़ा सकते हैं।जब उनका व्यवहार अभिभावक एवं पुत्र जैसा होगा। लेकिन वर्तमान समय में नहीं हो पा रहा है।
  पहले शिक्षक कक्षा के साथ ही छात्र के विकास के लिए हमेशा व्यक्तिगत स्तर से सोचते थे। लेकिन अब यह दायरा कक्षा तक ही सीमित होता जा रहा है।वह कक्षा के बाहर छात्रों के किसी भी गतिविधि पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। जिसके कारण वर्तमान समय में शिक्षक ,-छात्र के रिश्ते भी खराब हो रहे हैं लेकिन इसके बाद भी क‌ई ऐसे शिक्षक हैं और छात्र हैं जो अपने प्रयास से इस रिश्ते को ऊंचाई दे रहे हैं।
"गुरु समान दाता नहीं, याचक शीश समान,
तीन लोक की सम्पदा, हो गुरु दीन्ही दान।"