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कविता: मैं एक शिक्षक हूं (संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया, भोपाल, मध्यप्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “संगीता सूर्यप्रकाश मुरसेनिया की एक कविता  जिसका शीर्षक है “मैं एक शिक्षक हूं”:

 
आज मैं एक शिक्षक हूं ।
शिक्षा देने का दायित्व है ।
मुझ पर  मैं अपने ।
दायित्व का  निर्वाह ।
पूर्ण ईमानदारी और निष्ठा से ।
कर रही हूं ।
 
मैं बहुत सौभाग्यशाली हूं ।
मुझे शिक्षक होने पर ।
बहुत गर्व है,ईश्वर ने मुझे
विद्यार्थियों का जीवन ।
संवारने का अवसर ।
प्रदान किया ।
 
मेरे शिक्षक बनने के पीछे ।
मुझे ज्ञान प्रदान करने वाले ।
समस्त शिक्षकों को मैं शत-शत नमन करती हूं,
जिन्होंने मेरे ।
 
जीवन में ज्ञान का प्रकाश भर ।
मुझे शिक्षक पद योग्य बनाया ।
शिक्षक से बचपन में डांट भी ।
खाई अब समझ आया।
 
मेरे शिक्षक मुझे और मेरे जीवन ।
गढ़ने का भरपूर प्रयास करते थे ।
मेरे जीवन में आए समस्त शिक्षकों का मैं हृदय तल से बहुत-बहुत आभारी हूं ।
 
मेरे शिक्षकों की निस्वार्थ ।
ज्ञान भरने का परिणाम ।
मेरे सम्मुख है,मैं आज ।
शिक्षक के पद पर ।
कार्यरत हूं ।
 
शिक्षा कहीं से किसी भी ।
क्षेत्र से जब तक जीवन है ।
मिलती ही रहती है,जिनसे ।
हमें शिक्षा मिलती है,वह सब हमारे शिक्षक ही होते हैं ।
 
प्रत्येक प्रकार का ज्ञान ।
प्रदान करने वाले ।
समस्त जन शिक्षा देने के ।
कारण  शिक्षक ही कहलाएंगे ।
शिक्षक शिक्षा के माध्यम से ।
मानव जीवन को गुलाब, चंपा, चमेली, चंदन सी सुगंध से ।
 
सुवासित करते निरंतर ।
शिक्षक हमें ज्ञान के अमूल्य ।
रत्नों से सुसज्जित करता है ।
अज्ञान तिमिर को दूर कर ।
ज्ञान प्रकाश से आलोकित करता।
हमें दिव्य ज्ञान चक्षु प्रदान कर ।
 
हमें नैतिक गुणों के भंडार से ।
हमें पावन बनाता ।
हमें निर्विकारी निरंहकारी ।
बनाने का सतत प्रयत्न ।
करता, सकल विश्व में ।
शिक्षक का सम्मान ।
सर्वोपरि है ।

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