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कविता: बस इतनी सी मेरी अरमा है (गुंजन शर्मा, मोतिहारी, बिहार)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “गुंजन शर्मा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “बस इतनी सी मेरी अरमा है”:

 
ना आसमां छूने की चाह है,
ना किसी से आगे जाने की अरमा है।
बस मुझे जीना है जिंदगी,
तुझे बस इतनी सी मेरी अरमा है।
 
तेरी दी गई हर तोफे मुझे कुबूल
चाहे वो वन हो या हो वो फूल।
तेरे हर एक डगर पर मुझे चलना है,
तेरे हर एक फैसले पर मुझे खड़ा उतरना है।
 
तेरे फैसले से कभी मुंह ना मोडू
बस इतनी सी मेरी अरमा है।
 
चाहे मंजिल में क्यों न कांटे हो
फिर भी उस मंजिल पर चलना है।
तेरे हर डगर पर चलू बस
इतनी सी मेरी अरमा है।
 
तेरी इन खूबसूरत वादियों में हो
जाऊं मैं गुम, बस इतनी सी मेरी अरमा है।
तेरी इन हसीन वादियों में मुझे जीना है
तेरे हर एक पल को अपने यादों में सजोना है।
 
बस इतनी सी दिल की मेरी तमन्ना है
जी लू जिंदगी तुझे मै बस इतनी सी मेरी अरमा है।
 
ना आसमां छूने की चाह है,
ना किसी से आगे जाने की अरमा है।
बस मुझे जीना है जिंदगी,
तुझे बस इतनी सी मेरी अरमा है।