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कविता: फिर भी मुस्कुराती नारी (आकृति, सिरसा, प्रयागराज, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “आकृति की एक कविता  जिसका शीर्षक है “फिर भी मुस्कुराती नारी”:

 
फिर भी मुस्कुराती नारी
झेलती दैनिक  मुश्किलें सारी,
 
एक खिलखिलाती मुस्कान से
ख़ुश है वह अपने काम से,
होठों पर न कोई शिकायत
न मतलब उसे दुनिया और नाम से,
 
सामान्य जीवन जीने वाली
सभी कष्टों को पीने वाली,
हँसकर दुःखो को झेलकर
भरण पोषण करने वाली,
 
मजदूरी कर वो जाती घर
गृहकाम कर थक जाती ग़र,
फिर भी वो मुस्कुराती नारी
 
है शोहरत उसे काम उसका
है दौलत मुस्कान उसकी,
जिए नयी उम्मीद लेकर
यही एक अरमान उसके,
दुनिया उसकी सबसे न्यारी
फिर भी मुस्कुराती नारी,
 
झेलती दैनिक मुश्किलें सारी
फिर भी मुस्कुराती नारी।