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कविता: चाँद और आदमी (डॉ• राजेश सिंह राठौर, कल्याणपुर, कानपुर, उत्तर प्रदेश)


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
 "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार “डॉराजेश सिंह राठौर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “चाँद और आदमी”:

 
नीला आकाश -
उसकी छाती पर
निःशंक
तैरता हुआ चाँद ,
निहारता रहा मैं ।
उसके सौन्दर्य में
सराबोर
उसे निरखता रहा मैं ।
कि अचानक
झुण्ड कुछ बादलों का
उमड़ा और
सारे गगन पर छा गया ,
चाँद उसके आगोश में
छटपटाता रहा
कराहता रहा ,
मेरे मन में
करुणा के घन
बन कर अवसाद
छा गये ,
चाँद की दुर्दशा पर नहीं
आदमी की नियति पर
तरस आने लगा
जो सदियों से
सत्ताशीनो के
साजिशीय घनों के
आगोश में सिमट कर
टूटता रहा
बिखरता रहा
लेकिन
 निकल नही पाया
उन जालों से
उन साजिश के तन्तुओं को
तोड़ नही पाया ,,
तभी देखा कि
छँटने लगे थे बादल
मुस्कराता हुआ चाँद
झाँकने लगा था
कुछ इस तरह
जैसे आदमी को
उसकी नियति पर
मुँह चिढ़ा रहा था वह ।।