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लघुकथा: वन-फूल और गुंचे (सुनीता सामंत, गोरखपुर, उत्तरप्रदेश)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सुनीता सामंत की एक लघुकथा  जिसका शीर्षक है “वन-फूल और गुंचे":

        एक थी लड़की.... थोड़ी बावरी सी ....एक लड़का था ...सयाना सा बुद्धू .....जब भी मिलते, लड़की सुरमई सांझ सी लड़के की दिन की थकान परे कर उसके मन पर घर लौट चलने की  आश्वस्ति सी पसर जाती थी और लड़का धूप के टुकड़े सा लड़की के तन मन को रोशन कर जाता ।लड़की वन फूल और गुंचे चुनती थी और लड़का आकाश से तारे चुनता था जंगलों , पेड़ों, तितलियों और नदियों से लड़की का अटूट नाता था। पर लड़के की पतंग सात आसमानों के  पार अपना आकाश ढूंढती थी। अक्सर पूछता था वह लड़का लड़की से, क्या करेगी तू इन वन फूलों और जंगली  गुंचों का? लड़की हंस देती ....कुछ ना बोलती ....बस कुछ बनफूल और गुंचे लड़के के कदमों तले बिखेर देती और लड़का तब अपने तारे लड़की की मुस्कान पर वार देता.... वक्त बीतता गया लड़की अपने सपनों के वनफूल चुनती रही गुंचों को सहेजती रही.... लड़का आसमान और तारों में अपने सपनों की उड़ान को विस्तार देता रहा । एक दिन लड़की ने अपनी उम्मीदों के कुछ जुगनू तारे बनाकर आसमान में टांक दिया। तारे चुनते-चुनते लड़के को एक दिन लड़की के टांके तारे भी वहीं आसमान में मिले। पर अफसोस.... फूल से भी नाजुक टिमटिम तारे छूट गए लड़के के हाथों से और खो गए फिर अनंत आकाश के किसी शुन्य में... बादलों, वर्षा की बूंदों और आकाश- गंगा की असीम गहराइयों में खो गए बेचारे ! ... फिर एक दिन वक्त के तूफान में भटककर दोनों के रास्ते अलग हो गए लड़का सात समंदर पार चला गया लड़की वन फूलों को सहेजती रही गुंचों की माला बनाती रही ...लड़के के लिए..... सप्तपदी, सात जन्मों, सात वचनों के बंधन से परे.... उसने एक नाता बांध रखा था लड़के से...... सुनो लड़के, सुना है अब भी तुम तारे तोड़ते हो... तोड़ते रहना.... लेकिन ....संभल के ....किसी के अरमानों के तारे भी टके हैं तुम्हारे आसमान में..... अब मत तोड़ना......हो सके तो

 लौट आना... गुंचे और वन फूल अभी भी तुम्हारी राह तकते हैं।