पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मंगला श्रीवास्तव की एक कहानी जिसका शीर्षक है “वो बरसात की रात":
आज दोपहर से ही बहुत काले काले बादल छा रहे थे, सूरज भी यूं बादलों की ओट में कही जा छुपा था।इस कारण अंधेरा सा छाया हुआ था।बारिश का मौसम यूं तो शीलाजी जी को बहुत ही पसंद था।पर अब यही मौसम उनको डराता था व भयभीत करता था। वो अक्सर गैलरी में खड़ी होकर सुनी आँखों से रास्ते को निहारती रहती थी जैसे इंतजार हो किसी के आने का इस मौसम में।
आज से पहले वो बारिश के कितने ही बीते मौसम में अमित के साथ अक्सर बाइक पर बैठ कर घूमने निकल जाती थी।अमित को भी बारिश अच्छी लगती थी।अपने छोटे से आशियाने को उसने बहुत प्यार से बनाया था।
खूबसूरत बगीचा बहुत सारे फूलों से व घर पर लगाई हुई सब्जियों की बेले जिनकी वो दोनों खुद ही सजाते व संवारते थे।
गैलरी में लगा झूला जिस पर वो और अमित अक्सर एक साथ बैठ कर चाय पीते ऑफिस से आने के बाद व अपने मन की कहते सुनते थे।
बारिश होती तो अमित कहता शीलू
कुछ खाना है वो समझ जाती की उसको चाय के साथ बेसन के पकौड़े खाना है।और वो जल्दी से बना कर ले आती।
शादी के दो साल बाद उनकी जिंदगी में बहार बन कर सुमित आ गया था। प्यारा सा बेटा ,जिंदगी की इतनी खुशियां मानों उनके जीवन में अनेक रंग भर रही थी।धीरे धीरे कब समय पंख लगा कर उड़ा पता ही नहीं चला।अब भी वो जब भी वक़्त मिलता कार होने के बाद भी बारिश का मजा बाइक पर घूम कर ही लेते थे। पर एक दिन अचानक ही अमित को चक्कर आये व बुखार आ गया बस वो दिन मानों उनकी जिंदगी की खुशियों को ग्रहण ही लग गया था।
सारे चेकअप होने के बाद पताचला कि, अमित की दोनों किडनियां काम नहीं कर रही है। डायलिसिस होने लगा अब हफ़्ते में दो बार।कुछ दिन तक तो परिवार वाले साथ रहे पर अब कोई कब तक रहता सबके अपने काम व परिवार थे।
सुमित तब केवल दस साल का ही था। अब शीला जी की जिम्मेदारी भी बहुत बढ़ गई थी।घर नौकरी सुमित व अमित सबकी देखभाल करना।
पर वो हिम्मत नहीं हारती और ना कभी अमित को हारने देती थी।
अमित कभी कभी उसका हाथ पकड़ कर रोने लगते थे।
पर वो कहती बस आप का साथ ही मेरे लिए बहुत है ।आप मेरी हिम्मत है अमित बस आप खुश रहिए।
मैं सब संभाल लूंगी।पर अमित वो अंदर से टूटते ही चले गए थे। और
एक दिन वो हमेशा के लिए शीला जी और सुमित को छोड़ कर दूसरी दुनियां में चले गए।
शीलाजी को बस अब सुमित का ही सहारा था ।वो अमित के प्यार की निशानी था। अमित का सपना जो वो सुमित को लेकर देखता था पूरा करने में जुट गई थी।वो अपना दुख कभी सुमित को जाहिर नहीं होने देती थी।और सुमित उसकी हर आदत व शौक अमित की
तरह ही थे।वो भी बाइक चलाने का बारिश में घूमने का,चाय के साथ हमेशा पकौड़े खाने की फरमाइश
करना बागवानी करना,घर को सँवारने का शौक़ हमेशा उसको अमित की यादों से दूर नहीं होने देता था।
वक़्त गुजरता चला गया था सुमित ने अमित का सपना साकार कर दिया था ।
उसने मैनिट से इंजीनियरिंग पूरी कर ली थी।और उसका प्लेसमेंट भी अच्छी कम्पनी में हो गया था बैंगलोर में।पर शायद उनकी जिंदगी में आती खुशियों को मानों फिर से किसी की नजर ही लगाने वाली थी।बारिश का ही मौसम था,
आज सुबह से ही बारिश बहुत हो रही थी रुक रुक कर।
मम्मी मुझको आपसे किसी को मिलाना है। आज शाम को लेकर अा जाऊं सुमित उनसे लडियाते हुआ बोला।
शीला जी बोली अच्छा तो मेरा बेटा बड़ा हो गया है लगता है।
लेकर आ जाओ शाम को ठीक है।
मम्मी शाम को आप पकौड़े जरूर बनाना तरु को बहुत पसंद है।
अच्छा तो तरु नाम है उसका शीला जी हँसते हुए बोली।
हाँ मम्मी तरुणा उससे मिलकर आपको बहुत अच्छा लगेगा मम्मी। अच्छा मम्मी मेरी प्यारी माँ मैं आता हूँ उसको लेकर बाय बाय। अरे सुन बारिश का मौसम है कार लेकर जाओं,कही आते में बारिश तेज हो जाएंगी तो वो भी भीग जायेगी बेटा।पहली बार आ रही है वो।
अरे नही माँ उसको भी बाइक पर ही अच्छा लगता है ,वो भी आपकी तरह ही बाइक की सवारी ही पसन्द करती है और बारिश को भी आप दोनों की बहुत जमेगी मम्मी देखना और हँसने लगा था उनको प्यार करते हुए ।और बारिश वैसे भी रुक रुक कर हो रही है।कहकर सुमित ने बाइक उठाई और हेलमेट लगाकर निकल गया ।
शीला जी ने कभी नही सोचा था कि सुमित की ये बाय बाय उसकी आखरी बार की बाय होगी।
वो शाम को तैयार होकर व सारी तैयारी कर के सुमित का इंतजार करने लगी थी।वही झूले पर बैठ कर चाय पीते हुए। बारिश अपना मानो विकराल रूप दिख रही थी। पर भी वो आनंद उठा रही थी, उसका क्योंकि आज वो बहुत खुश जो थी। वो अपने हाथों से झूले के उस भाग को स्पर्श कर जहां अमित बैठते थे ,मन ही मन बोली कि सुनो आज आपकी बहु आ रही है हमारे सुमित की पसन्द ।
और उनकी आँखों से आँसू बहने लगे थे।उसी वक्त जोर से बिजली कड़कड़ाने लगी थी।
अचानक ही न जाने क्यों उनका मन भयभीत से हो गया था।
हाथ मे पहनी घड़ी को देख तो रात के आठ बज चुकें थे। वो अब घबरा कर उठी और दरवाजे के पास जाकर खड़ी हो गयी थी।अब रहरह कर उनका मन बेचैन हो रहा था।
उन्होंने मोबाइल लगाया सुमित को तो वो आउट ऑफ कवरेज हो रहा था। वो घबरा कर पास रहने वाले जोशीजी के घर पहुँची और उनसे बोली भैया सुमित अभी तक नही आया है मोबाइल भी बन्द आ रहा है आप जरा पता लगाइये। रोहित जो कि सुमित का बचपन का दोस्त था व जोशीजी का बेटा था,उसको बोली बेटा तुम तो उसके सारें दोस्त को जानते हो जरा पूछकर देखो कोई के साथ हो।
रोहित बोला आंटी आप घबराइये मत मैं अभी पता करता हूँ।
उनके व सुमित के अच्छे स्वभाव के कारण उनके सारें पड़ोसी उनसे बहुत प्यार करते थे और अमित के जाने के बाद तो परिवार वालों से भी ज्यादा पड़ोसी ही उनका परिवार थे जो हर वक्त उनके साथ खड़े होते थे।
रोहित ने कई जगह फोन लगाया पर कोई के पास से सुमित का पता न चला। अब जोशीजी बोलें रोहित कार निकालो चलो देख कर आते है।वो बाहर निकले ही थे कि उनको
दो पुलिस वालों के साथ सुमित का दोस्त निखिल आते हुए दिखा, उसने रोहित को पास बुलाकर कुछ बताया जिस को सुनकर उसके मानो होश ही उड़ा गए थे।
शीला जी और जोशी जी दोंनो पुलिस वाले को देख एक अनहोनी आशंका से घबरा ही गये थे।
शीला जी ने रोहित की मम्मी रेणुका जी का हाथ पकड़ लिया था जोर से।
पुलिस वाले तब तक पास आ चुके थे और बोले मिस्टर सुमित कोलार रोड़ के रास्ते से आते वक्त उफनते नाले में बह गए है।उनके साथ कोई लड़की भी थी। सुनकर शीला जी मानों पहाड़ पर से गिर पड़ी हो । और चक्कर खा कर गिर पड़ी व बेहोश हो गयी।
तब तक औऱ भी सारे पड़ोसी आ गए थे।उनको घर पर ले जाकर लेटाया गया । वो जैसे ही होश में आती चिल्लाकर सुमित को पुकारने लगती ।
जैसे ही पानी रुका वैसे ही पुलिस व पूरी कॉलोनी के लोगों ने समूह बना कर नाले में से सुमित को खोजने की मुहिम शुरू की कई घण्टों की खोजबीन के बाद सुमित व तरु की बॉडी एक जगह झाड़ी में उलझी हुई मिल गई थी।
वो रात शीला जी के लिए एक मनहूस बारिश की रात साबित हुई।
सुबह जब पोस्टमार्टम के बाद सुमित को घर लाया गया तो ,वो कुछ नही बोली बस सुन्न सी बैठी रही । कही अंनत को निहारती रही।परिवार वाले व पड़ोस के सभी लोग उनको रुलाने की कोशिश करते रहें व खुद रोते रहे।
पर उन्होंने सुमित को अंतिम विदाई नही दी।बस वो बोली कि सुमित आयेगा तरु को लेकर।
आज कितने साल बीत गए वो अकेली उसी घर में रहती है व कही नही जाती बस इंतजार करती है गैलरी में खड़ी होकर अपने बेटे सुमित का। ये बारिश उनको बहुत डराती है बस।