पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार मंगला श्रीवास्तव की एक कहानी जिसका शीर्षक है “अब में अबला नही":
सरोज आज कुछ जल्दी में काम कर रही थी। सुबह से ही उसका सिर बहुत दर्द कर रहा था।इस कारण वो आज उठी भी थोड़ी देर सी थी।उसने जल्दी जल्दी नाश्ता बनाया और दोनों बच्चों नीरा और राघव को तैयार कर स्कूल भेजा ।और जल्दी से खुद भी तैयार होकर बुटीक पर निकल गयी अपना टिफिन लेकर।
पति के अचानक गुजर जाने के बाद आज लगभग सात महीने हो गए उसको अपने ससुराल को छोड़ कर आये हुए।
ससुराल भी अच्छा था। सास सुसर व देवर और उसके पति व दोनों बच्चों के साथ वो खुशहाल जिंदगी जी रही थी।
सास व ससुर दोनों सरकारी स्कूल में टीचर थे।पति सौरभ भी एक कम्पनी में मैनेजर थे। व देवर विलास पढ़ाई कर रहा था कॉलेज में।
वो घर मे रहकर ही सिलाई करती व घर संभालती थी।
पर उसने सोचा भी ना था कि एक दिन अचानक उसकी जिंदगी में आया एक तूफान उसकी जिंदगी बदल देगा।पति को अचानक ही हार्टअटैक आया औऱ अस्पताल ले जाने का समय भी नही दिया मौत ने।
पति सौरभ के जाने के बाद उसको और बच्चें दोनों को सास व सुसर ने अच्छी तरह रखा क्योंकि सरोज के रहते उनको घर की कोई चिंता नही थी। हाथों में गरमा गरम खाना मिलता ।घर की देखभाल भी होती रहती,और दोनों घूमने के भी शौकीन थे।अक्सर छुट्टियों में कही ना कही चले जाते थे।वो भी अपना दुख भुलाने की कोशिश करते हुए अपनी यही नियति मान अपना पूरा फर्ज निभाती रही।
दोनों बच्चें छोटे और अभी उसकी भी उम्र कोई ज्यादा नही हुई थी।यही कोई तैतीस साल की थी ऊपर से सुंदर भी बहुत थी।
दो ब्च्चों की माँ होने के बाद भी वो लगती नही थी कि वो माँ भी बन चुकी है।
उसके अकेलेपन को देखते हुए जवान देवर अब कभी कभी अकेले देखता तो
कभी उसका हाथ पकड़ लेता ,या कभी
पल्ला खींच देता।पहले तो वो उसकी नादानी ही समझती रही, पर अब जब भी मौका मिलता वो उसको पीछे से पकड़ लेता ।अब वो बहुत डरी सहमी रहने लगी थी।एक दो बार उसने अपनी सास को धीरे से सब बातें बताई भी पर वो बोली।अरे तुम्हारे मन का वहम है।वो तुमको माँ जैसा ही समझता है।जब तुम आई थी वो दस साल का ही तो था।कहकर बेटे का ही पक्ष लेने लगती थी।
अब वो क्या करती मन मसोस कर रह जाती थी।पर उस दिन तो विलास ने हद ही पार कर दी थी जब उसके सास व ससुर दोनों दो दिन के लिए मामा ससुर के लड़के की शादी में गए थे।बच्चें दोनों स्कूल गए हुए थे।वो दोपहर में अपने काम से निपट कर सिलाई कर ही रही थी कि,उसका देवर अपने एक दोस्त के साथ
अचानक ही घर आ गया था।भाभी क्या कर रही हो।वो एकदम घबरा गई थी।
मेरा व राजू का खाना लगा दो।कहकर अपने कमरे में चला गया था।
उसने खाना लगाया व टेबल पर रख कर बोला भैया खाना लगा दिया है आप लोगो का ,में अभी बच्चों को लेकर आ रही हूँ।
कहकर जैसे ही दरवाजे पर जाकर देखा
वो बंद था व उसपर ताला लगा हुआ था।
वो एकदम घबरा गई और दौड़ कर कमरे में जाने लगी थी कि, उसके देवर व दोस्त
दोनों ने उसको घेर लिया।
भाभी कहां जा रही हो क्यों अपनी जवानी ऐसे ही निकाल रही हो ।कोई को कुछ पता नही चलेगा बस आप हमारी इच्छा पूरी कर दो। आप तो एक अबला नारी हो ,कहकर दोनों हँसने लगे थे। कब तक यूँही अपनी जिंदगी बिताओगी ।आप तो अभी जवान हो ।आपकी भी तो इच्छाएँ होगी। हम पूरी कर देंगे ।
आज तक वो ये सब सहती आयी थी सिर्फ अपने बच्चों के लिए,पर आज उसको अपने देवर जिसको वो अपना बेटा ही मानती थी,उसके इस घिनोने रूप को देखकर नफरत हो रही थी। उसके अंदर की नारी आज जाग उठी थी।वो समझ गयी थी कि अब वक्त आ गया है उसको खुद में हिम्मत लाकर इन सब परिस्थितियों से निपटना ही होगा।
क्यों वो एक अबला नारी बन कर रहे।
वो बता देगी सबको की वो अबला नही।आज की नारी है ।जो कि सबला है
उसको अपनी सुरक्षा करनी ही होगी।
अब वो टेबल के बिलकुल पास ही आ गयी थी सरकते हुए।
विलास और उसका दोस्त राजू दोनों
भी उसके पास आ गए थे ,और जैसे ही उसका हाथ पकड़ने लगे थे कि उसने
अपने हाथों से टेबल पर रखी थाली में से
सब्जी की कटोरी उठाई और जोर से दोनों के चेहरे पर फेंक दी थी दोनों आँखों को मसलते हुए नीचे बैठ गए थे। अब उसने अव देखा ना ताव पास ही रखा पीतल का भारी फूलदान उठा कर दोनों के सिर पर जोर से मारा ओर बोला खबरदार जो मुझको अबला बोला तुमको औरत की अंदर की शक्ति का अहसास भी नही है।
जब तक वो नाजुक है नारी है वर्ना वो दुर्गा का ही दूसरा रूप है। और दोनों को तड़फता छोड़ अपनी दूसरी चाबी लेकर आई और थोड़ा सामान कपड़े रखे खुद के व बच्चो के और घर से बाहर निकल आयी थी।
बहार आकर उसने दोनों बच्चो को स्कूल से लिया व ऑटो में बैठ अपनी सहेली राधा जिसके साथ उसने सिलाई सीखी थी उसके पास जाकर सारी बात बताई।
राधा ने अपना खुद का ही बुटीक खोल लिया था और उसको कह भी एक परफेक्ट सिलाई कारीगर की जरूरत भी थी।उसने उसको कहा कि सरोज तुमको डरने की कोई जरूरत नही।मुझको भी एक सिलाई पार्टनर की जरूरत भी थी मेरे बुटीक के लिए। उसने राधा के यही से अपनी सास को फोन किया व सारी बात बता कर कहा कि माँ में अब वहां नही रह सकती जहां मेरी इज्जत पर कभी भी आंच आ जाये ।मैने तो देवरजी को बेटा ही माना था ।पर वो मुझको अपनी माँ तो क्या भाभी भी नही समझ सकें।
आप मेरी व बच्चों की चिंता मत करना,अब मैं जहाँ भी हूँ बहुत सुरक्षित हूँ।व भगवान ने मुझको इतना हुनर तो दिया ही है कि मैं अपना व बच्चों का ध्यान रख सकूँगी ।व उनको अच्छे स्कूल में पढ़ाई भी करवा सकूँगी।प्रणाम कहकर फोन रख दिया था।
और आज वो अपनी सहेली राधा की बूटिक की हेड बन गयी है अपनी मेहनत से ।व अपना खुद का सिलाई सेंटर भी खोल चूकि है।