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दोहे सद्गुरु के (स्वामी प्रेम अरूणोदय, रंगकठेरा, डोंगरगांव, राजनांदगांव, छत्तीसगढ़)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार स्वामी प्रेम अरूणोदय के दोहे  जिसका शीर्षक है “दोहे सद्गुरु के":

गुरुचरण अनमोल है, उनको कोटि प्रणाम।
ईहलोक परलोक के, बनते सारे काम।।
 
'गु' का अर्थ तो है तमस, 'रू' का अर्थ उजास।
संशय दुख दुर्ज्ञान तम, गुरु करे सब नाश।।
 
मात पिता पहले गुरु, शिक्षक गुरु द्वितीय।
पूर्ण ज्ञान जो दे हमें, गुरु अतुल स्मरणीय।।
 
क्रमिक रूप से साधना, विधिवत सकल प्रयास।
शिक्षा दीक्षा दक्षिणा, सतआहार आवास।।
 
कदम-कदम सब बढ़ चलें, चलें पूर्ण की ओर।
यह जीवन भगवान है, कोई ओर न छोर।
 
चिन्मय सृष्टि अखंड है, ईश्वर ही यह जान।
आगम निगम अनूप का, देता सद्गुरु ज्ञान।
 
गुरु विषय गंभीर है, गुप्त गूढ़तम गूढ़।
पूर्ण चेतना की दशा, परमज्ञान आरुढ़।।
 
जग में गुरु अनेक है, सद्गुरु केवल एक।
झांकी अगम अपार की, गुरुचरण नख देख।।
 
निराकार चित ब्रम्ह है, गुरु ब्रम्ह साकार।
चिदानंद के स्रोत हैं, शाश्वत अपरंपार।।
 
जो हरि से चट जोड़ दें, वह सद्गुरु महान।
सृष्टि स्थिति संहार का, जो दे पूरा ज्ञान।।
 
जागृत स्वप्न सुषुप्ति औ', तुरी तुरीयातीत।
गोपन अति अध्यात्म के, बतलाते जो रीत।।
 
निगुरा के दुख जेठ पर, गुरु दया आषाढ़।
झमझम बरखा तृप्ति की, ज्ञान भक्ति की बाढ़।।
 
प्यासों को पनघट दे, भटकों को सतबाट।
दुख विकार अज्ञान को, दे पल भर में काट।।
 
मिला जिसे सद्गुरु यहां, बड़भागी वह धन्य।
परम ज्ञान के खान हैं, अतुल प्रेरणा जन्य।।
 
मिला जिसे सद्गुरु नहीं, बहुत बड़ा दुर्भाग्य।
अर्थहीन तब है सभी, जप तप व्रत वैराग्य।।
 
रीति नीति डगमग यहां, कलयुग का है राज।
गुरुवेश में घूमते, पाखंडी है आज।।
 
स्वांग गुरु का भर रहें, छल तृष्णा के दास।
छली गुफा में रच रहा, गुपचुप लीला रास।।
 
भ्रामक इनके बोल हैं, थोथा इनका ज्ञान।
चिकनी चुपड़ी हांकते, रख अंटी पर ध्यान।
 
हरण करें धन शिष्य का, हरें न मन के शोक।
गुरु नहीं घंटाल है, रक्त चूस ज्यों जोंक।।
 
देख समझ कर गुन मनन, गुरु बनायें जान।
ब्रम्हनिष्ठ श्रोत्रिय यही, जिनके हैं पहचान।।
 
सकल विश्व का है गुरु, अपना भारतवर्ष।
नतमस्तक हो देखते, जग इसका उत्कर्ष।।
 
विश्व गुरु के शुभ चरण, झुका विश्व का माथ।
संकट सदा उबारता, नाथों का यह नाथ।।
 
गुरु शरण में सब चलें, छोड़ सभी छल द्वंद।
गुरु चरण में भेंट है, अरुणोदय के छंद।।