पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार स्वामी प्रेम अरूणोदय के दोहे जिसका
शीर्षक है “दोहे सद्गुरु के":
गुरुचरण अनमोल है, उनको कोटि प्रणाम।
ईहलोक परलोक के, बनते सारे काम।।
संशय दुख दुर्ज्ञान तम, गुरु करे सब नाश।।
पूर्ण ज्ञान जो दे हमें, गुरु अतुल स्मरणीय।।
शिक्षा दीक्षा दक्षिणा, सतआहार आवास।।
यह जीवन भगवान है, कोई ओर न छोर।
आगम निगम अनूप का, देता सद्गुरु ज्ञान।
पूर्ण चेतना की दशा, परमज्ञान आरुढ़।।
झांकी अगम अपार की, गुरुचरण नख देख।।
चिदानंद के स्रोत हैं, शाश्वत अपरंपार।।
सृष्टि स्थिति संहार का, जो दे पूरा ज्ञान।।
गोपन अति अध्यात्म के, बतलाते जो रीत।।
झमझम बरखा तृप्ति की, ज्ञान भक्ति की बाढ़।।
दुख विकार अज्ञान को, दे पल भर में काट।।
परम ज्ञान के खान हैं, अतुल प्रेरणा जन्य।।
अर्थहीन तब है सभी, जप तप व्रत वैराग्य।।
गुरुवेश में घूमते, पाखंडी है आज।।
छली गुफा में रच रहा, गुपचुप लीला रास।।
चिकनी चुपड़ी हांकते, रख अंटी पर ध्यान।
गुरु नहीं घंटाल है, रक्त चूस ज्यों जोंक।।
ब्रम्हनिष्ठ श्रोत्रिय यही, जिनके हैं पहचान।।
नतमस्तक हो देखते, जग इसका उत्कर्ष।।
संकट सदा उबारता, नाथों का यह नाथ।।
गुरु चरण में भेंट है, अरुणोदय के छंद।।