पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सन्धया पाण्डेय की एक कहानी जिसका शीर्षक है “ममता की छुअन":
सबकुछ दिया प्रभु
ने,एक आकांक्षा अधूरी रह गयी।कितना मांगा था भगवान से एक बेटी
नही डाली मेरे आँचल में।समय जैसे जैसे आगे बढ़ता गया अन्तरमन की इच्छा नीचे दब
गई।दोनों बेटों की परवरिश में इतना व्यस्त हो गए कि कुछ याद ही नही रहा।
अब एकबार फिर से हिलोर उठी जब हमउम्र
सहेलियां सास बनने लगीं।उनकी बेटियों के हाथ पीले होने लगे।। काश--मेरी भी कोई
परछाईं होती?में भी किसी के आंगन में अपनी छवि भेजती।में भी
किसी को उसका घर सजाने का मौका देती।मेरी शिक्षा और संस्कार किसी अन्य कुल में
समाहित होते।जब जो चीज़ अपने पास नही है उसका दुःख ना करो ,जो है उसका सम्मान करो बस इसी तरह मन को समझा लेती।
अबतक तो वो समय भी आ गया था जब बेटा अपनी
जीवन संगिनी लेने चला।धूमधाम से शादी हुई।दिल के सारेअरमान पूरे कर डाले।घर में एक
रौनक आ गयी।पायलों की आवाज चूड़ियों की खनक से घर सुशोभित हो गया।बहू एक प्रतिष्ठित
परिवार की सुंदर, सुशील,शिक्षित,संस्कारित मिल गई थी।घर खुशियों। से भर गया।। हमने ईश्वर का धन्यवाद किया।
मन मेंएकबार फिर खयाल आने लगा।भगवान हमें भी
एक कन्या देता ""हम उसका कन्यादान करते""।
मैने यह
बातक्षितिज से साझा की--///
अपने को कन्यादान
का मौका ही नही मिला?
क्षितिज ने बड़ी
ही संजीदगी से समझाया--देखो रागिनी कन्यादान देने वाला तो दान देकर मुक्त हो जाता
है, असल जिम्मेदारी दान लेने वाले कि हो जाती है।
हमने कन्यादान
झेला है हमें इसको सहेजकर रखना,सम्भालकर रखना चाहिए।यही हमारा धर्म है,औऱ यही कर्तव्य।
गृहस्थी की गाड़ी बड़े आराम से गुज़र रही थी।नई
बहू मिहिरा ने अपनी वाक्पटुता,चतुर्यता,चपलता औऱ मासूमियत से
सबको मोहित कर लिया था।वो घर में अच्छी तरह रच बस गयी थी। छोटों को प्यार करना,बड़ो का सम्मान करना उसे भली भांति आता था।हमदोनों सासबहू की भी अच्छी पटरी
बैठी थी।खूब जमती थी दोनों में।जब भी मिहिरा को हँसते खिलखिलाते देखती तो दिल के
खाली कोने से फिर आवाज आने लगती-----मेरी भी बेटी होती?
सासबहू वाली
फ़ीलिंग तो बहुत अच्छी थी परंतु रिश्तों में माँ बेटी की खुशबु का अभाव था।एक बार
मेरी बहुत तबीयत खराब हुयी।में सारा दिन उठ नही पायी।तब मिहिरा ने मेरे पास आकर
मेरे सिर को छुआ ।
मम्मी आपको तो
बुख़ार है?
हाँ हल्का सा।
कोई हल्का नही
अच्छा तेज बुख़ार है।
मैं ठीक हु
मिहिरा।
आप चुपचाप लेटी
रहो--मैं आपका सिर दबा देती हूं।
मिहिरा के कोमल हाथों के स्पर्श ने जैसे जैसे
मेरे सिर को सहलाना शुरू किया वैसे वैसे मेरे हृदय का शून्य भरता चला गया।मुझे पता
ही नहीं चला कि मिहिरा कब बहू से बेटी बन गयी।
ममता की छुअन ने
मेरे अंदर की बेटी की पीर को सहला दिया और मैने ईश्वर से शिकायत करना बंद कर दिया।