पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार रविकान्त सनाढ्य की एक कविता जिसका शीर्षक है “कविता ने ले ली अंगड़ाई !":
शब्दों में व्यथा अगर बाँधूँ
तो हृदय किसी का बिखरेगा !
भावों को मन में क़ैद रखूँ ,
मेरे मानस को अखरेगा !
यह कभी नहीं होगा मुझसे
कागज़ पर पीड़ा उतरेगी !
मेरी पीड़ा में गहराई ,
दुनिया की आँखें भीगेंगीं !
जोड़ूँगा टूटे अर्थों को
खोलूँगा दिल की परतों को !
वेदना असीमित गहराई ,
कविता ने ले ली अँगड़ाई !
मुझको अब कोई ना रोको ,
अब भाव-घटा है लहराई !
कविता का उमड़ा है सोता ,
अब तनिक लगा लूँ मैं गोता !
ये नयन-अश्रु अब ढलने दो ,
मोती सम इनको पलने दो !
यह समय-सीप की सुघराई ,
है रास मुझे इतनी आई !
है ज्वार उठा मत थमने दो ,
मेरे अरमान मचलने दो !
है विश्व-वेदना पलकों में ,
मुझको कुछ कहना, कहने दो !