पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार नीतू पुरोहित की एक लघुकथा जिसका
शीर्षक है “एनकाउंटर":
दीपक स्कूल से अपने माता पिता के साथ 9 कक्षा का रिजल्ट लेकर घर लौटा l आतें ही मम्मी पापा ने नसीहत देना शुरू कर दिया l
"देखो दीपक तुम ज्यादा उछलो मत तुम्हारे ये 95%नम्बरक कोई मायना नहीं रखते ये तो 65% के बराबर ही है..... हमारी इज्जत तो तब बढेगी जब तुम यही नम्बर 10 बोर्ड में लाओ
इसके लिए अभी से ही पढना शुरू कर दोl
आपको पता है...... मेरी भानजी ने 10 में टाप किया था अखबार और मिडिया वालो की लाइन लग गईं थीं घर में
इसी तरह पूरा दिन दीपक को मोटीवेट किया गया और पूरे साल अच्छे नम्बर लाने का दबाव कभी माता पिता तो कभी दादा दादी और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा दीपक पर पडता रहाl
आखिर वार्षिक परीक्षा भी हो गई और आज उसका रिजल्ट भी घोषित हो गया...
दीपक के 92% बने जो कि माता पिता की उम्मीद से कम थे
रिजल्ट देख कर दीपक कमरे में चला गया 2/3 घंटे बाद तक बाहर नहीं आने पर दरवाजा तोड़ने पर देखा कि उसने पंखे पर लटका मिला l
उसका एनकाउंटर हो चुका था l एनकाउंटर करने वाली थी परिवार के लोगों की उम्मीदें l जो 95% से कम अंक लाने पर जीवन जीने का अधिकार नहीं देतीं
दीपक स्कूल से अपने माता पिता के साथ 9 कक्षा का रिजल्ट लेकर घर लौटा l आतें ही मम्मी पापा ने नसीहत देना शुरू कर दिया l
"देखो दीपक तुम ज्यादा उछलो मत तुम्हारे ये 95%नम्बरक कोई मायना नहीं रखते ये तो 65% के बराबर ही है..... हमारी इज्जत तो तब बढेगी जब तुम यही नम्बर 10 बोर्ड में लाओ
इसके लिए अभी से ही पढना शुरू कर दोl
आपको पता है...... मेरी भानजी ने 10 में टाप किया था अखबार और मिडिया वालो की लाइन लग गईं थीं घर में
इसी तरह पूरा दिन दीपक को मोटीवेट किया गया और पूरे साल अच्छे नम्बर लाने का दबाव कभी माता पिता तो कभी दादा दादी और परिवार के अन्य सदस्यों द्वारा दीपक पर पडता रहाl
आखिर वार्षिक परीक्षा भी हो गई और आज उसका रिजल्ट भी घोषित हो गया...
दीपक के 92% बने जो कि माता पिता की उम्मीद से कम थे
रिजल्ट देख कर दीपक कमरे में चला गया 2/3 घंटे बाद तक बाहर नहीं आने पर दरवाजा तोड़ने पर देखा कि उसने पंखे पर लटका मिला l
उसका एनकाउंटर हो चुका था l एनकाउंटर करने वाली थी परिवार के लोगों की उम्मीदें l जो 95% से कम अंक लाने पर जीवन जीने का अधिकार नहीं देतीं