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कविता: शिक्षक (सलिल सरोज, दिल्ली)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की एक कविता  जिसका शीर्षक है “शिक्षक":

एक शिक्षक क्या सोचता है?
अपने बच्चों के भविष्य की कुशल कामना,
राष्ट्रनिर्माण में नौनिहालों का पथ-परिक्रमण,
समाज की रुग्णता का अमूल चूल निवारण,
भय और आक्रांत की परिधि पर स्वेच्छा का शासन,
कोढ-कलुषित मानसिकता का उद् बोधन ,
सामूहिक नैतिक जिम्मेदारियों का संवहन,
काल-कवलित मानवता का स्वार्थ हीन संरक्षण,
जाति,वर्ग,धर्म भेद की कुल्टा का परि निर्वाण,
गरीबी,भूख,लाचारी,वैमनस्यता का निर्मूलन,
संविधान की परिभाषा का सर्वथा अनुपालन
 
या
इससे इतर भी कुछ सोचता है
जैसे
अपने लिए
मँहगे कपड़े
पक्के मकान
चमचमाती गाडियाँ
बेइन्तहाँ ऐशो-आराम
नाम और शानों-शोहरत
जो अपने शिष्य की दी हुई नहीं हो
अपने शिष्य से भिन्न
अपनी अलग पहचान हो
और अगर ऐसा सोचता है तो
क्या यह नितांत गलत है?
क्या द्रोणाचार्य को
केवल अर्जुन से ही जाना जाएगा,
उसकी धनुर्विद्या की पराकाष्ठा
केवल उतना ही माना जाएगा,
क्या वह सदा नेपथ्य में
आह्लादित होता रहेगा,
क्या अपनी इच्छाओं का तिरस्कार ही उसकी नियति होगी,
इन सब झझवातों के बीच एक गुरु के उपर क्या बीतती होगी!!!
 
पर क्या गुरु ने ही नहीं देखा था-
अपने शिष्यों में
अपने ख्वाबों को खिलते हुए
अपने रात-दिन की जाद्दोजहद को बेहतर पलते हुए
आशा और निराशा के दो छोरों को आपस में मिलते हुए
और
अपने अहम और अपने स्वार्थ को दिन-रात पिघलते हुए
 
हर एक विद्यार्थी के काबिल होते जाने में
कठिनाइयों और चुनौतियों की बाँहें मरोड़ते जाने में
हर उस शिक्षक की भी जीत है;
जिसने अपनी नींद ,सुख,चैन सब गँवाया है
हर दिन को रात और हर रात को दिन बनाया है
धूल और पत्थरों में से कितनी कठिनाइयों से चुन-चुन कर
एक- एक बच्चे को हीरा और जवाहरात बनाया है
 
शिक्षक की अपेक्षाओं में ही बच्चों का भविष्य पलता है
और फिर वही साकार और सुदृढ़ भविष्य समाज को मिलता है।।