पश्चिम
बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से
प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद
हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके
सामने प्रस्तुत है रचनाकार सलिल सरोज की एक कविता जिसका शीर्षक है “शिक्षक":
एक शिक्षक क्या सोचता है?
इससे इतर भी कुछ सोचता है
जैसे
अपने लिए
मँहगे कपड़े
पक्के मकान
चमचमाती गाडियाँ
बेइन्तहाँ ऐशो-आराम
नाम और शानों-शोहरत
जो अपने शिष्य की दी हुई नहीं हो
अपने शिष्य से भिन्न
अपनी अलग पहचान हो
और अगर ऐसा सोचता है तो
क्या यह नितांत गलत है?
केवल अर्जुन से ही जाना जाएगा,
केवल उतना ही माना जाएगा,
आह्लादित होता रहेगा,
अपने शिष्यों में
अपने ख्वाबों को खिलते हुए
अपने रात-दिन की जाद्दोजहद को बेहतर पलते हुए
आशा और निराशा के दो छोरों को आपस में मिलते हुए
और
अपने अहम और अपने स्वार्थ को दिन-रात पिघलते हुए
कठिनाइयों और चुनौतियों की बाँहें मरोड़ते जाने में
हर उस शिक्षक की भी जीत है;
हर दिन को रात और हर रात को दिन बनाया है
धूल और पत्थरों में से कितनी कठिनाइयों से चुन-चुन कर
एक- एक बच्चे को हीरा और जवाहरात बनाया है
और फिर वही साकार और सुदृढ़ भविष्य समाज को मिलता है।।