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कहानी: अंतिम संबोधन (आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद, कौशाम्बी, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार आदित्य अभिनव उर्फ डॉ. चुम्मन प्रसाद की एक कहानी  जिसका शीर्षक है “अंतिम संबोधन":

सी. सी. ए. इंचार्ज डॉ. सुमन परिहार ने अंग्रेजी अध्यापक श्री पुष्पेंद्र सिंह का नाम अंतिम संबोधन के लिए मंच से उद्घोषित किया बच्चों ! अब मैं उस महाशय को अंतिम संबोधन के लिए बुलाने जा रहा हूँ , जो आप सबको फिजिकल टीचर के अनुपस्थिति में लगभग नौ महीने तक खेलकूद की शिक्षा देते रहें तथा अपने जिंदादिली के लिए पूरे विद्यालय में मशहूर है। वे इस शेर को पूर्णत: चरितार्थ करते हैं

 

जिंदगी जिंदादिली का नाम है

मुर्दादिल क्या खाक जिया करते हैं ?

 

मैं, श्री पुष्पेंद्र सिंह सर को अंतिम संबोधन के लिए सादर आमंत्रित करता हूँ। प्राचार्य श्री अनुप कुमार जी से बातों में निमग्न श्री पुष्पेंद्र जी तेज कदमों से आगे बढ़े और मंच पर रखे डायस को अपनी ओर खींचते हुए गंभीर वाणी में बोले परम आदरणीय प्राचार्य महोदय, शिक्षक गण एवं मेरे प्यारे बच्चों ! आज मैं बड़े असमंजस और संकट की घड़ी में हूँ। आप सब से विदा लेने की इस बेला में मेरी जुबान लड़खड़ा रही है। लगभग तीन वर्षों तक आप सबके साथ रहने तथा पढ़ाने के बाद मुझे आप सबसे किस प्रकार का लगाव हो गया है यह कहना शब्दों की सीमा से परे है।‘’ आँखों में आए आँसुओं को रुमाल से पूछते हुए भर्रायी आवाज में अपनी बात जारी रखते हुए बोले बच्चों ! कहने को तो बहुत कुछ है लेकिन इस समय मेरी जुबान साथ नहीं दे रही है। आप लोगों ने इतना प्यार दिया है उसे मैं संभाल नहीं पा रहा हूँ । बच्चों ! आप सब जीवन में मन लगाकर पढ़े एक अच्छा नागरिक बने और देश हित को सर्वोपरि रखें।‘’ इतना कहने के साथ ही आँखों में आए आँसुओं को पोछते हुए वे मंच से उतर गए।

 

श्री पुष्पेंद्र जी पोस्टिंग जा रहे हैं अपने घर के पास। उनका घर हरियाणा में है और वे हरियाणा के शहर कुरुक्षेत्र के केंद्रीय विद्यालय ,न.2 में जा रहे हैं । मंच से उतारकर वे फिर प्राचार्य जी के पास चले गए उनसे बात करने के लिए। प्राचार्य महोदय भी उन्हीं के गृह राज्य से हैं। दोनों में खूब जमती हैं। प्राचार्य जी अन्य किसी भी शिक्षक से सीधे मुँह बात नहीं करते लेकिन पुष्पेंद्र जी से घनिष्ठ मित्रों की तरह बात करते हैं। वे प्राचार्य जी के खास आदमी है। इस खास के पीछे कुछ खासियत भी है। कहने को तो वे शिक्षक हैं लेकिन शिक्षक के राष्ट्र निर्माता , चरित्र निर्माता के किसी भी गुण का उनसे दूर-दूर तक कोई संबंध नहीं है। हर बात पर उनके जुबान से गालियाँ ऐसे निकलती है मानो उनका तकिया कलाम हो। शाम के वक्त मित्रों के साथ अंगूर की बेटी का सेवन अनिवार्य है। उनके नजर में प्राचार्य महोदय जिनसे उनको हमेशा लाभ ही होना है को छोड़कर कोई भी शिक्षक या व्यक्ति चाहे विद्यालय का कितना भी महत्वपूर्ण विभाग क्यों न संभाल रहा हो, कोई काम नहीं करता है । मजाल है कि कोई शिक्षक अपने बारे में या अपने अच्छे किए गए कार्यों की चर्चा सबके बीच कर सके। उसकी बात पूरी ही नहीं होगी कि वे बीच में ही ऐसा शगुफा छोड़ेंगे कि वह बेचारा अध्यापक चुप हो जायेगा। हाँ प्राचार्य महोदय के प्रसन्न करने के लिए जितनी बातें हो सकती है वह सब उन्हें आती है और प्राचार्य महोदय भी किसी कर्तव्यनिष्ठ शिक्षक के बात कभी नहीं सुनेंगे लेकिन इस महानुभाव का अलीफ- बे- ते -से सब ध्यान से सुनेंगे और करेंगे भी। सभी शिक्षकों के नाक में दम है लेकिन कोई करें तो क्या करें।

 

बच्चों का मन बड़ा ही निर्मल होता है। वे शिक्षक महोदय की आँखों में आँसू देख कर भ्रमित हो गए। बच्चों ने आकर श्री पुष्पेंद्र जी को घेर लिया । पुष्पेंद्र जी अब बच्चों को चरित्र , आचरण , देशप्रेम की बातें बताने लगे। बच्चे ध्यान से सुन रहे थे। मैं थोड़ी दूरी पर खड़ा सब देख रहा था तथा मन ही मन गुन रहा था। बच्चों का झुंड पुष्पेंद्र जी के चरणों को स्पर्श कर जा चुका था। प्राचार्य जी श्री अनुप कुमार जी ने उनसे पूछा भाई ! आज तो आप दूसरे रूप में नजर आ रहे थे । सचमुच बड़ा ही संवेदनशील दयावान हृदय है आपका।‘’

 

श्री पुष्पेंद्र जी ने अपने चिर परिचित अंदाज में ठहाका लगाया और बोले अरे सर ! कभी-कभी ऐसा रूप भी धारण करना पड़ता है, जमाने को दिखाने के लिए।‘’ इसके साथ ही पॉकेट में रखे हुए ग्लिसरीन की डिबिया को प्राचार्य जी के हाथों में रख दिया।