पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राधा गोयल की एक कहानी जिसका शीर्षक है “क्यों लगा दी आग इस महके चमन में आज":
उत्सव नहीं था लेकिन लोगों के जमघट ने उसे उत्सव जैसा ही बना दिया।सबके हृदय में गुस्से की और शोक की लहर थी।सड़क पर जगह-जगह झुंड में लोग खड़े हुए थे और आपस में कानाफूसी कर रहे थे।
दोपहर को 12:00 बजे के करीब एक पड़ोसन अपने पोते को गोदी में लेकर बदहवास सी रोती और दौड़ती हुई आईं "अरे हम लुट गए। बर्बाद हो गए। हम लुट गए। बर्बाद हो गए। जल्दी चलो। जल्दी चलो। बस आप चलो। "
"क्या हुआ, क्या हुआ? बताओ तो।शान्ति रखो।रोना बंद करके यह बताओ कि हुआ क्या?"
"अरे नहीं! बस आप चलो। आप चलो" और हाथ पकड़कर खींचने लगीं।सुमित उनके साथ भागे। जल्दी से उनके साथ भागते-भागते मैंने बहू को आवाज लगाई कि लता भाग कर नीचे आ। पता नहीं क्या हुआ?सरला आंटी के यहाँ आ जा।( हमारे इधर वाले ब्लॉक में लगभग डेढ़ सौ मकान 80 मीटर के हैं और सभी ने 3 मंजिले मकान बना रखे हैं। जब तक बच्चे छोटे थे तो 2 फ्लोर किराए पर दिए हुए थे। जब बच्चों की शादी हो गई तो जिन लोगों के दो बेटे हैं, उन्होंने एक- एक फ्लोर दोनों बेटों को दे दिया। जिनका एक ही बेटा है, उसको एक फ्लोर दे दिया है।खुद भूतल पर रह रहे हैं और एक फ्लोर किराए पर चढ़ा दिया है। लगभग सभी ने रसोई भी अलग-अलग ही की हुई है, जिससे कि बच्चे अपनी जिंदगी अपने हिसाब से जी सकें। कोई भी किसी की जिंदगी में बेमतलब की दखलअंदाजी ना करें। बस सुख- दु:ख में एक दूसरे के काम आते रहें।)" रचना ने कहा
"यह तो बहुत बुरा हुआ।फिर....क्या हुआ?" विभा ने पूछा
"उनके घर गई तो रोते- रोते बोलीं उमा ने फाँसी लगा ली।" रचना बोली
"ऐं!" मैं एकदम चौंक गई। "ऐसा क्या हुआ? कब लगा ली? किस समय लगा ली?" मैंने पूछा तो बोलीं कि-" मुझे कुछ नहीं पता।मैं तो खुद हवन में गई हुई थी।राजू रिया को डांस क्लास में छोड़ने गया हुआ था। हवन से आकर मैंने उमा को आवाज़ लगाई कि गुड्डू को दे जा। मालिश कर दूँ। कोई आवाज नहीं आई। पोते की रोने की आवाजें आ रही थीं तो फोन किया लेकिन फोन भी नहीं उठाया। अब घबराहट होने शुरू हुई तो राजू को फोन किया कि बच्चा रोए जा रहा है और उमा फोन नहीं उठा रही है। वह भागा- भागा आया। अंदर कैसे घुसता? वो तो शुक्र है कि एक बार जब रिया छोटी थी तो उसने कमरे की कुंडी लगा ली थी। वो अंदर बंद हो गई थी।तब एक खिड़की को आधा कटवाया था।अब उसके आगे अलमारी लगाई हुई थी। जैसे- तैसे उस अलमारी को बाहर से हाथ डालकर बड़ी मुश्किल से खिसकाया।तब जाकर देखा।"
तब तक दौड़ती हुई मेरी पुत्रवधू भी पहुँच चुकी थी। उसको बताया। वह दौड़ती हुई ऊपर पहुँँची।उमा की चेस्ट पर प्रेस किया लेकिन नतीजा सिफर।हाॅस्पिटल ले जाना था।ऊपर से नीचे लेकर आना था।मैं अपने बेटे को फोन कर चुकी थी कि तू घर आ जा।यहाँ राजू की बीबी गिर गई है और बेहोश पड़ी है। हमारे घर में वाइटवाश हो रहा है। लेबर लगी हुई थी। बहू ने सबको आवाज़ लगाई कि जल्दी से सब नीचे आ जाओ। जैसे- तैसे चादर पर डालकर उसे सीढ़ियों से नीचे लाये।शुक्र है कि रविवार था और ज्यादातर लोग घर में थे।उसको हॉस्पिटल ले गए। मेरी बहू उनके पीछे- पीछे ई-रिक्शा में गई।सुमित सभी रिश्तेदारों को फोन करते रहे।उमा की सास फोन करने को मना कर रही थीं। उनको एक उम्मीद थी कि शायद बहू बच जाए लेकिन सुमित ने जबरदस्ती उनके नंबर लिए और फोन किये और कहा कि अपने लोगों को इकट्ठा कर लो।
हम बदहवास से दौड़ रहे थे, वो भी बदहवासी की हालत में दौड़ती हुई एक और पड़ौसी को बुलाने गई थीं। गली के लोगों को उत्सुकता हुई। खबर जंगल की आग की तरह फैल गई।मुझसे पूछा तो मैंने कहा कि केवल इतना मालूम चला है कि उमा बेहोश हो गई है। गिर गई थी। सर में जबरदस्त चोट लगी है तो उसे अस्पताल लेकर गए हैं। न जाने किसने अफवाह फैला दी कि वो फंदे से लटकी है।अफवाह तो जंगल की आग की तरह फैलती है। सभी लोग उमा पर थू- थू कर रहे थे। गली में बेहिसाब भीड़ इकट्ठी हो गई। घर भी पूरा भर गया था।सुमित ने पड़ोसियों को वापस भेजा कि आप लोग जाओ। घर से तो सभी लोग बाहर आ गए मगर गली में 15 -20 के झुंड में खड़े रहे। सुमित ने इसलिए बाहर भेजा क्योंकि उन्हें अंदर बैठकर फोन करने थे और मैं सरला को दिलासा दे रही थी। थोड़ी देर में बहू को फोन लगाया कि बेटा क्या रहा? उसने रोते हुए बताया कि उमा भाभी गईं।डॉक्टर ने मृत घोषित कर दिया है। सुनते ही सरला भी लुढ़क गई।पाँच महीने का पोता उनकी गोद में था। यह अफवाह तो गली में फैल ही गई थी कि उसने फंदा लगाया था, क्योंकि किसी एक ने यह बात कह दी थी। और कह किसने दी थी? साथ वाली पड़ौसन है। उसके कान सबकी बातों पर लगे रहते हैं। कोई और काम तो रहता नहीं है। उन्होंने ही आवाज सुनी होगी क्योंकि जब मैं भागी हुई जा रही थी तो पूछ रही थीं कि बहन जी क्या हुआ? गले पर इशारा करके यह भी कहना चाह रहीं थीं कि फाँसी लगा ली है क्या ? किसी एक को यह कहा होगा तो सभी तक बात पहुँच गई लेकिन सरला के बारे में कोई भी बुरा भला नहीं कह रहा था। हर कोई उमा को कोस रहा था।
"वो क्यों"- विभा बोली
" उमा इतनी तेज तर्रार थी कि अपने पति को पूरी तरह से अपने वश में किया हुआ था। विधवा सास को कभी दो रोटी बनाकर नहीं दीं।पोती को बचपन से विधवा सास ही संभालती थीं, क्योंकि बहू नौकरी करती थी।जब सरला के पति की मौत हुई, तब तीनों बच्चे बहुत छोटे थे।सरला को पति की जगह अध्यापिका की अनुकम्पा नौकरी मिल गई थी।बड़ी कुशलता से तीनों बच्चों को पाला।नौकरी के साथ-साथ घर का सारा काम भी खुद करती थीं। दोनों लड़कियाँ उच्च प्रशिक्षण प्राप्त कर विवाह के बाद विदेश में रहती हैं। चार पाँच साल में कभी आती हैं।भाभी की गृहस्थी में किसी भी ननद की किसी तरह की कोई दखलंदाजी नहीं है। उमा के मायके वाले ही महीने में 15-15 दिन बेटी के घर में टिके रहते हैं। उसका भाई , माँ और तलाकशुदा बहन। एक बहन पहले ही शादी होने के बाद फाँसी पर लटक कर आत्महत्या कर चुकी थी।"
"कमाल है।फिर तो हो सकता है कि उमा ने भी आत्महत्या की हो?"
"यह तो नहीं पता , पर एक बात जरूर है कि सरला ने कभी अपने बहू बेटे की बुराई नहीं की। उमा अपने पति को माँ से बोलने नहीं देती थी फिर भी वह अपने बेटे से यही कहती थीं कि बेटा कोई बात नहीं। तू टेंशन मत ले। जब वो नहीं होती है, तब मुझसे बात कर लेता है ना। तुम दोनों खुश रहो। तुम्हारी गृहस्थी ठीक-ठाक चलती रहे। मुझे तुम्हारी खुशी के अलावा और कुछ नहीं चाहिए।बेटियाँ परदेस में हैं। मैं तो तुम्हारी खुशी देखकर ही जिन्दा हूँ। हाँ , एक बार उन्हें तकलीफ जरूर हुई थी जब वो अपनी बेटी की डिलीवरी के दौरान 6 महीने के लिए लंदन गई थी तब बहू ने पीछे से फर्स्ट फ्लोर पर अपने लिए अलग रसोई बनवा ली थी और खाना-पीना अलग कर लिया था। तब भी दुखी भले ही थीं, लेकिन कहा कुछ नहीं था। अब तो सभी लोग यह सोच रहे थे कि अच्छा है रसोई अलग थी, वरना तो सास के ऊपर ही इल्जाम रख देती। अपना पूरा वेतन मायके पर खर्च करती थी। भाई निकम्मा कोई काम नहीं करता। पति इतना प्यार करता है कि बीबी के इशारों पर ही नाचता है। या तो इस डर से कि उसकी एक विवाहित बहन ने शादी के एक साल बाद ही सुसाइड कर लिया था।छह साल मुकदमा चला और उमा ने बहन के पति को तीन साल की कैद करवाकर ही दम लिया।"
"कमाल है।फिर कुछ पता लगा कि उसने आखिर फाँसी क्यों लगाई?"
"नहीं , यह तो पता नहीं लग पाया कि आखिर क्यों उसने फाँसी लगाई ? यह बात किसी को भी समझ नहीं आ रही थी। यह तो बाद में पता लगेगा। थोड़ी सी मुझे अपनी पुत्रवधू से पता लगी। अस्पताल में जब डॉक्टर ने पूछा, " क्या हुआ था?कुछ बात हुई थी क्या ?" तब उसके पति ने कहा था कि थोड़ी पैसों को लेकर कहा-सुनी हो गई थी। एक दिन पहले तो खुशी- खुशी मेरे पति को बता रहा था कि, "अंकल एक टेंडर निकला है। मैंने इसके भाई को बीस लाख रुपए दे रखे हैं।उमा से भी बात कर लूँगा। इसके पास भी पैसे जमा होंगे, क्योंकि मैं इसकी तनख्वाह से एक पैसा भी नहीं लेता।अब लूँगा तो वो भी वापस कर दूँगा।टेंण्डर एक करोड़ का है। थोड़ा और कहीं से इंतजाम करूँगा। थोड़ा आप मदद कर देना।डॉक्टर के पास उसने इतना ही कहा कि कुछ पैसे को लेकर कहा-सुनी हो गई थी। अब यह तो सारा काम निपट जाएगा तब ही पता लग पाएगा कि क्या बात हुई थी।"
"भला यह भी कोई बात हुई ? क्या पति की मदद करना पत्नी का फर्ज़ नहीं होता? जब भाई अच्छा भला कमाने वाला है तो अपना पूरा वेतन मायके पर लुटाने का क्या औचित्य है?"विभा बोली
"वही तो सभी कह रहे हैं। उसके पति ने तो फिर भी उसे कभी मना नहीं किया कि तू मायके के लिए क्यों खर्च कर रही है, ना ही उससे उसकी कमाई का कभी एक पैसा भी माँगा। सारे पड़ोसियों के मुँह पर एक ही बात थी कि ये ठीक होकर वापस आ जाए (क्योंकि तब तक यह पता नहीं लगा था कि वह जिंदा है या मर गई) तो दोनों गालों पर 10-10 थप्पड़ कसेंगे।इतनी अच्छी सास,इतने अच्छे पति के होते हुए तूने ऐसा कदम किसलिए उठाया जबकि घर में तू पूरी तरह अपनी ही चलाती थी... और तू खुश रहे इसलिए तेरी सास और तेरा पति कभी कुछ नहीं कहते थे।जितना तेरी सास ने तेरी और तेरे बच्चों की सेवा की, इतनी कोई नहीं कर सकता।
दादी अपनी पोती के हर जन्मदिन पर हवन कराती थी। पूरा उत्सव होता था, लेकिन बहू शामिल नहीं होती थी और अपने पति को भी शामिल नहीं होने देती थी। सास से कहती थी कि तुम्हें उत्सव मनाने का शौक है। अपनी पोती के जन्मदिन पर हवन करवाने का शौक है। तुम करवाओ। मेरे बस की नहीं है तैयारियाँ करवाना...लोगों के बैठने के लिए जगह बनाना। तुम्हें तो आए दिन किसी ना किसी बहाने मेला लगाने का शौक है।सरला मुझसे, मेरे पति से, पड़ोस में एक और थीं जो अब इस संसार में नहीं हैं... केवल तीन लोगों से मन की बातें कह देती थीं।उन्हें पता था कि हम किसी से नहीं कहेंगे। यहाँ तक कि जो मेरे पति को बताया जाता था, पति ने मुझसे कभी शेयर नहीं किया।
उमा की एक सहेली हमारे सामने वाले घर में रहती है। रात को दोनों साथ- साथ घूमती थीं। जब उमा की मौत का समाचार आया तो घर के बाहर जमघट लगना ही था। सारा आस-पड़ोस इकट्ठा हो गया। उसकी सहेली उस समय गैस पर कढ़ाई में तेल डालकर कुछ बना रही थी। गैस बंद करना भूल गई और रोने लगी। उसका पति उसे उसकी बहन के घर छोड़ने चला गया (जो यहाँ से थोड़ी ही दूर पर रहती है)। अपने शेर जैसे कुत्ते को घर में ही बंद कर गए थे। गैस पर कढ़ाई चढ़ी हुई थी। तेल जल- जलकर धुआँ निकलना शुरू हुआ और आग लग गई। पहले तो लोगों ने सोचा कि शायद अंदर अपनी सहेली की मौत के ग़म में हवन कर रही होगी। उसका धुआँ आ रहा होगा लेकिन जब जबर्दस्त लपटें उठनी शुरू हुईं तब लोगों को चिंता हुई। जोर-जोर से दरवाजा खटखटाया, क्योंकि कुत्ते के भौंकने की आवाजें आ रही थीं। दरवाजा खटखटाने पर भी दरवाजा नहीं खोला। शुक्र है किसी के पास उसका मोबाइल नंबर था। फोन किया। मेरे घर में लेबर लगी हुई थी। वाइटवॉश हो रहा है। उन्होंने छत पर से देखा कि भयंकर लपटें उठ रही हैं। ऊपर बहुत लंबा पाइप रखा हुआ था।लेबर से कहा कि जल्दी-जल्दी पानी डालो। गली में सब लोगों ने अपने घर से बाल्टी भरकर पानी डालना शुरू किया।मेरा घर बिल्कुल सामने है। घर के बाहर पाइप लगाया और मेरे बेटे बहू और पोते ने भी पानी डालना शुरू किया। मुश्किल से आग बुझ पाई और बहुत बड़ा नुकसान होने से बच गया। उत्सव था पर उत्सव नहीं था। जमघट था... पर उत्सव नहीं था। मौत के लिए मातम भी नहीं था।केवल सरला के बेटे और पोता पोती के लिये हमदर्दी थी।
उठाला था जिसमें कम से कम एक हजार लोग थे।वो सब उमा के लिए नहीं... अपितु सरला के संबंधों की वजह से आए थे।सभी मौन और स्तब्ध थे।सबकी आँखों में एक प्रश्न था,जिसका उत्तर नहीं ढूँढ पा रहे थे।बाहर आने पर सब एक ही बात कह रहे थे कि उमा सबको एक सबक तो सिखा गई है कि बेटे की शादी करके उसे फौरन अलग कर दो।अपने घर में भी मत रखो।पोते पोती की ममता करना छोड़ दो।बुढ़ापे में ऐसी दुर्गति होने से अच्छा है कि अपने घर को वृद्धाश्रम बना लो और बेसहारों को सहारा दो।"
"ये सब सुनकर तो मैं भी सोच रही हूँ कि रसोई अलग ही कर लूँ।आधे झगड़े तो रसोई एक होने की वजह से ही होते हैं।वैसे भी आजकल की बहुओं में बर्दाश्त तो बिल्कुल है ही नहीं।हमारे ही पड़ौस में दो काण्ड हो चुके हैं।बहू ने छोटी सी बात पर पुलिस बुला ली।हमारी तरफ तो सबने बेटे बहुओं को ऊपर अलग पोर्शन दे दिया है।हम तो ना ऊधो के लेने में और न माधो के देने में। आखिर क्यों अपनी जान को झमेला मोल लें। " विभा बोली