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कविता: हिंदी (कल्पना गुप्ता "रतन", जम्मू एंड कश्मीर)

 

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार कल्पना गुप्ता "रतन"  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “हिंदी”:

हिंदी हमारी आन है
हिंदी हमारी शान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।
 
घर-घर में, बोली जाती, भाषा हिंदी है
सुशोभित करती, लगता माथे पर जैसे बिंदी है
हिंदी भाषा है, मां हमारी
देशवासियों के लिए, बहुमूल्य वरदान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।
 
हिंदी में हम, सरलता से समझते हैं  समझाते हैं
सुंदर सलोने शब्द इसके, सुंदरता से रिश्ते बनाते हैं
हिंदी से विश्व भर में,
भारत देता आया, अपना योगदान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।
 
मां की लोरी है हिंदी, मां बच्चे के बीच, डोरी है हिंदी
कबीर के‌ मीठे दोहे, मीरा के प्रेम रस से भरी, है हिंदी
आती जाती सांसों में बसी
हिंदी हम सबकी जान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।
 
भारतीयता समझाती है, आत्मीयता सिखाती है
विश्व भर के लोगों को, भारत से जुड़ाती है
यह है हमारे मन की प्रिय भाषा
होता इससे सांस्कृतिक, आदान-प्रदान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।
 
 
हिंदी हमें भाती है ऐसे, बच्चों को मां प्यारी हो जैसे
हिंदी से होता मित्रता का संचार, होता शुद्ध व्यवहार
देश हमारा गौरव से भरा
हिंदी में होता इसका गुणगान है
मातृभाषा है यह हमारी
मातृत्व की पहचान है।