Welcome to the Official Web Portal of Lakshyavedh Group of Firms

कविता: प्रकृति (निशा ठाकुर, लूकशान, नगराकाटा, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार निशा ठाकुर की एक कविता  जिसका शीर्षक है “प्रकृति":

ये "प्रकृति"
हर पल,हर वक़्त
हमसे कुछ कहती हैं
सिखाती हैं , समझाती है
महसूस कराती है!
ये प्रकृति
हर पल, हर वक़्त
हमसे कुछ कहती है!!
 
ये उगता हुआ सूरज ,
और ढलती हुई शाम
मानो गमो का अंधेरा,
और नई उम्मीद की भोर
उदासी , मायूसी में भी,
एक सुकून भरा ठोर
 
 
ये सरोवर की  बहती हुई
पवित्र और शीतल धारा,
मानो काट - छाट कर , हर बाधा को
मंजिल की,  राह से हटाना
और साथ ही बिना स्वार्थ भाव के,
जीव प्राणियों की प्यास बुझाना!
 
ये चट्टानों पर , उगता पौधा
और देखते - देखते पेड़ का बनना
मानो कीसमत से , लड़ झगड़ कर,
हालातो से जीवन को छीनना
और शान से सर उठा कर,
अपनी अस्तित्व की रक्षा करना ।
 
ये प्रकृति हर पल, हर वक़्त
हमसे कुछ कहती है,
सिखाती हैं, समझाती है
हमे महसुस कराती हैं
 
 
ये चांद की चांदनी,
टिमटिमाती तारो की माला
मानो दुःख के अंधियारी में,
हिम्मत की ज्योत जलाना
और काजल सी घनघोर रात को,
दीप जला कर प्रकाश भरना
 
 
चिड़ियों की  चहचहाहट ,
निडर ऊंचाई में उड़ना
नन्ही चिटियो का,
वो परिस्थिति लड़ना
और मिट्टी की गोधूलि खुशबू
शुद्धता का एहसास दिलाना
 
 
जीते जागते ये सजीव उदाहरण
मानव जाती को सिखाती हैं
प्रमाण देती हैं
अपनी उपस्थिति का,
ये प्रकृति
हर पल, हर वक़्त
हमसे कुछ कहती हैं
सिखाती हैं, समझाती है
हम महसूस कराती हैं