अनुराग-भाव दिन-प्रतिदिन बाढ़ै लाल ,
प्रीत को सिखर अति उच्च है कमाल है ।
लाली मेरे लाल की मैं जित देखूँ लाल-लाल ,
मेरे प्रभु आपको ये अनूठो जलाल है ।
आपकोतोक़दअतिउँचाईकोछुएहुए,
पापी हूँ मैं प्रीत जानूँ नहीं, ये मलाल है ।
प्रीत को बनाय दियो बनिज औ फाँस लियो,
दुनिया में जिसे देखूँ, वही तो दलाल है ।।
वासुदेव आपकी कृपालुता अहैतुकी है ,
नहीं बिसवास मुझे,प्रतीति कराइये ।
रूप-सिनगार में निमग्न भी न होओ इते ,
लटके तो मुझे अब आप न दिखाइये ।
चाहता हूँ कामनाएँ-मोह सब त्याग दूँ मैं,
रूप-चकाचौंध मुझे आप न दिखाइये ।
सुना है कि रस के अखंड दिव्य स्रोत तुम,
मुझे लॉलीपॉप देके मत बहलाइये।
श्री जी पै गुलाबी वस्त्र कैसो आज ओप रह्यो,
स्याम जू की अनुपम दिपत निकाई है।
ऐसो लगै तारों मध्य सोह रह्यो कृष्णचन्द्र,
ब्याप्त हुई चहुँ दिस अमल जुन्हाई है ।
प्रीत को प्रकास देखो जगमग -जगमग,
हो गयी उदित मेरे पुण्य की कमाई है ।
मेरे प्यारे ब्रजराज, कृपालु अनंद-कंद,
तेरे चिर औ अखन रूप की दुहाई है ।।