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कविता: गुरु (डॉ अवधेश कुमार अवध, भंगागढ़, गुवाहाटी, असम)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ अवधेश कुमार अवध की एक कविता  जिसका शीर्षक है “गुरु":

गुरु से गणना गुरु से गिनती,

         गुरु से रस छंद समास सभी।

गुरु से रसआयन भौतिक भी,

     गुरु शिक्षक शीर्ष समाज सभी।।

गुरु नैतिक अर्थ सुपथ्य कला,

      सुर काव्य खगोल पुराण सभी।

गुरु ईश्वर हैं अरु ईश गुरू,

      गुरु से गण ज्ञान विधान सभी।।

 

गुरु के पग में सुख धाम रहे,

           सब लोग कहें यह पावन है।

हम नेक बने तज टेक सभी,

           गुरु ज्ञान सखे मनभावन है।।

शुभ लग्न भयो गुरु आन मिले,

          यह काल सुकाल कहावन है।

गुरु साथ मिला,मन फूल खिला,

          हिय ज्ञान प्रकाश सुहावन है।।

 

गुरु से नभ है गुरु से वसुधा,

            गुरु से यह सूरज चाँद रहे।

गुरु से गिरि हैं गुरु से सरिता,

          गुरु से सचराचर ज्ञान बहे।।

गुरु रूठ गये जग सून भयो,

        हरि छोड़त हाथ अनाथ कहे।

अवधेश सनेह मिले गुरु तो,

        भगवान हुलासहिं गोद गहे।।