इन्द्रधनुषी है छटा, मुतियन- माल अटा,
आज का स्वरूप तो रुचिर मुग्धकारी है ।
गिरिवरधारी, मेरे मुरली- बजैया तुम,
नील-घन- आभ तेरी श्याम सुखकारी है ।
विहँस के देखो नंदलाल कछू मेरी ओर
बिरद तुम्हारो तो महान उपकारी है ।
सबद नहीं हैं पास, रूप क्या बयान करूँ,
छवि नित नई , रविक॔त बलिहारी है ।।
अनंद के सिंधु आप, धर्यो वेस केसरी है,
आपको स्वरूप मेरो हियो हरखावै है ,
सारे ही कलंक -अंक तव छबि पिबत ही,
भयभीत होइ-होइ बेगि दुरि जावै है ।
तव सरनाई ऐसी प्रेम की प्रतीति देय ,
राजा अरु रंक सभी धन्य हुइ जावै है ।
हरी पिछवाई कहरही है हुलासमय,
मेरे स्याम ठाड़े-ठाड़े मन- मुसकावै है ।।.
ललन लसै है लाल- लाल वेस धारीवालो ,
अनुपम छटा बनी ,सुख को अगाज है ।
सीस पर लाल पाग, छत्र जैसो मोरपंख,
अद्भुत कान्हा जी को प्यारो- प्यारो ताज है ।
बढ़चढ़ एक से तो एक हैं सिंगार- साज,
देखो कैसे मनोहर लगैं राजराज हैं।
प्रण- प्रतिपाल हैं ये बड़े ही कृपा के सिन्धु,
इनके ही हाथ सारे जग की तो लाज है ।।