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कविता: किन्तु वह कौन थी? (राघवेंद्र सिंह, चिनहट, लखनऊ, उत्तर प्रदेश)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार राघवेंद्र सिंह की एक कविता  जिसका शीर्षक है “किन्तु वह कौन थी?”:

 
मन था कौतुक किन्तु विभा मौन थी?
दृग सी कोमल थी किन्तु वह कौन थी?
थी वह इंदुमती और थी वह मुदित।
पांव में थे छागल विस्मृति से उदित।
 
थी वह निर्झर या बूंँद पावस की थी।
वह प्रभा थी या रात अमावस की थी।
थी अलख वह किन्तु स्वर क्लांत था।
रव थे वे स्वतंत्र और हृदय शांत था।
 
पथ से निकली मिली कंदरा राह में।
कोई पल्लव और गाछ की चाह में।
उस दुरूह राह पर कारवां साथ था।
पट खुले नेत्र के और अश्रु हाथ था।
 
स्निग्धिता और वह कल्पित युक्त थी।
सर्व कारणों से वह भी मुक्त थी।
था अस्तित्व उसका किन्तु वह मौन थी।
थी वह शाश्वत किन्तु वह कौन थी
?