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कविता: आपदाओं को हराना है (रंजना मिश्रा, कानपुर, उत्तर प्रदेश)

 


पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंससे प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिकाके वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार रंजना मिश्रा की एक कविता  जिसका शीर्षक है “आपदाओं को हराना है":
 

हमें फिर आज मिलकर
आपदाओं को हराना है,
जो घेरे है हमें विपदा
उसे जड़ से मिटाना है,
बहुत अब हो चुका डर-डर
के जीना है बड़ा मुश्किल,
दिखे जब मौत का साया
है थम जाता धड़कता दिल,
मगर जज़्बातों को कमजोर
होने से बचाना है,
हमें फिर आज मिलकर
आपदाओं को हराना है,
न टूटे मन, थके न तन,
जिएं विश्वास ये लेकर,
सफर में साथ है ईश्वर
चलें बस आस ये लेकर,
कि हमको हर कदम पर
इक नया साहस दिखाना है,
हमें फिर आज मिलकर
आपदाओं को हराना है,
अगर रौशन हो दिल तो
फिर अंधेरे घेर न पाते,
कुशल माली चमन का हो
नहीं फिर फूल मुरझाते,
बढ़ाकर आत्मा की लौ
हमें तम को मिटाना है,
हमें फिर आज मिलकर
आपदाओं को हराना है,
हां अब रहना अकेले है
न छूना है, न मिलना है,
मगर एकसाथ की ही
भावना से सबको चलना है,
मिटाकर फासले दिल के
विजय का गीत गाना है,
हमें फिर आज मिलकर
आपदाओं को हराना है,
जो घेरे है हमें विपदा
उसे जड़ से मिटाना है
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