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लघुकथा: गब्बर सिंह आया (मुनमुन ढाली, रांची, झारखंड)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के
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        गांव में कामिनी नई -नई दुल्हन बन कर आई ।कामिनी ने ससुराल आते ही, अपना सिक्का जमा दिया । कामिनी के सामने ससुराल वालों की घिघि बनी रहती थी, गांव वाले भी कामिनी से कन्नी काट कर निकलते थे। लोगों के मन में कामिनी को लेकर एक डर ,घर कर गया था। बड़े ठाठ से कामिनी के दिन ससुराल में बीतने लगे। सबके बीच कानाफूसी होने लगी कि, कामिनी का भाई गब्बर बहुत बड़ा दादा है और बहुत ही गुस्सेल प्रवृत्ति का है ।बात-बात पर मारपीट पर उतर आता है ,एक दो बार तो जेल की हवा भी खाई है । सब गब्बर का नाम सुनकर ,शोले के गब्बर से तुलना करने लगे ।बात फैलते -फैलते तिल से ताड़ हो गई ।कामिनी अपने गब्बर भाई के नाम पर पूरे गांव में धाक जमाती फिरती ।बड़े मजे से कई साल बीत गए। आज कामिनी की गोद भराई थी। मायके से आशीर्वाद देने माता -पिता के साथ ,एक दुबला पतला सा लड़का भी आया ।सब को प्रणाम कर कोने में कुर्सी लेकर बैठ गया।  कामिनी  गब्बर वाली बात को बिल्कुल भूल गई थी।

        एक छोटा बच्चा उस दुबले -पतले लड़के से बात करने लगा ।बच्चे ने तोतली जुबान से उसका नाम पूछा ,लड़के ने अपना नाम गब्बर बताया ।पास खड़ी  गांव की बूढ़ी महिला ने उसका नाम सुन लिया और जोर जोर से चिल्लाने लगी और सब गांव वालों को इकट्ठा कर लिया और बोलने लगे ,देखो रे देखो !बहुरिया का भाई गब्बर सिंह आया है। गांव वाले सब उसको देखने उमड़ पड़े। गब्बर बेचारा भौचक्का सा सबको देख रहा था। उसे कुछ समझ ही नहीं आ रहा था कि "आखिर  हो क्या रहा है," उधर कामिनी सब सुनकर शर्म से लाल हो गई ।गांव वालों ने गब्बर सिंह की खूब खातिर की और उसको पूरा किस्सा सुनाया ।गब्बर के साथ सब गांव वाले पेट पकड़ कर हंसने लगे कामिनी भी ज़ोर -ज़ोर से हँसने लगी ।