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कविता: झूठी प्रशंसा से बेहतर सच्ची आलोचना (संजय "सागर" गर्ग, जलपाईगुड़ी, पश्चिम बंगाल)

पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार संजय "सागर" गर्ग  की एक कविता  जिसका शीर्षक है “झूठी प्रशंसा से बेहतर सच्ची आलोचना”:

झूठी प्रशंसा से बेहतर
सच्ची आलोचना ही होती,
जीवन में आगे बढ़ने की
गुर इसमें समाहित होती।
आलोचना अगर हो तो
समझो तुममें कुछ बात है,
वरना फुरसत किसे है आज
समय तो नहीं किसी के पास है।
कोई नकल करे तुम्हारी
तो समझ लो सफल हुए तुम,
उसी की, की जाती है नकल
जिसमें कुछ काबिलियत है होती।
आत्म - प्रशंसा से बचो तुम
अहम इससे जन्म लेती,
आक्रामक निंदक को साथ रखो
सच्चे ज्ञान की प्राप्ति होती।
मन को तटस्थ रखकर तुम
दोनों भावों को ग्रहण करो,
कमियां और विशेषताओं को सहेजकर
अभीष्ट दिशा की ओर बढ़े चलो।