पश्चिम बंगाल के जलपाईगुड़ी जिले के "लक्ष्यभेद पब्लिकेशंस" से प्रकाशित होने वाली सर्वप्रथम हिन्दी डिजिटल फॉर्मेट की पत्रिका "लक्ष्यभेद हिंदी ई-पत्रिका" के वेब पोर्टल पर आपका स्वागत है। आज आपके सामने प्रस्तुत है रचनाकार डॉ अवधेश कुमार “अवध” की एक कविता जिसका शीर्षक है “प्रभाकीट”:
एक खद्योत ने जब चुनौती सुनी,
रात को कालिमा पर अहंकार है,
साहसी कौन है जो टिके सामने!
जबकि साया भी अपना हुआ लापता।
कर्म की योजना
रात में खो गई,
लोग लाचार होकर
घिरे नींद में,
तप्त- चूल्हा विरह में लगा ताकने,
हाथ को हाथ भी तो नहीं सूझता।
चाँद खोया कहीं, सूर्य
आया नहीं,
कालिमा का ही फैला यहाँ राज है,
दूर तारे व दीपक नहीं
साथ में,
श्याम-रजनी का सानी नहीं दीखता।
देखकर सन्न अम्बर, विवश यह
मही,
एक जुगनू चमककर खड़ा आज है,
वह चमकने लगा
रात के सामने,
छोड़ना ही पड़ा
रात को रास्ता।
राह में हो अगर कोई मुश्किल बड़ी,
और मन में इरादा जो फौलाद है,
सीख ले रे मनुज इस प्रभाकीट से
हौसले से असम्भव
सदा हारता।।